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Wednesday, December 10, 2025
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महागठबंधन को बढ़त, NDA को झटका; नीतीश बने बिहार के चाणक्य 2.0!

अब ऐसा माना जा रहा है कि मुकाबला त्रिशंकु विधानसभा की ओर बढ़ रहा है, जहां कोई भी गठबंधन स्पष्ट बहुमत से दूर रह सकता है।

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बिहार चुनाव के एग्जिट पोल और टीवी चैनलों की बहसों के बीच यह तय माना जा रहा है कि इस बार राज्य की राजनीति एक नई कहानी लिखने जा रही है। सीटों की खींचतान और गठबंधनों के भीतर बढ़ती असहमति के बीच महागठबंधन में मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री चेहरे की घोषणा ने समीकरणों को और उलझा दिया है। अब ऐसा माना जा रहा है कि मुकाबला त्रिशंकु विधानसभा की ओर बढ़ रहा है, जहां कोई भी गठबंधन स्पष्ट बहुमत से दूर रह सकता है।

राज्य में तीसरे मोर्चे के रूप में प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी सबसे ज्यादा सुर्खियों में है। पीके खुद को एनडीए और महागठबंधन के बीच की “तीसरी धुरी” के रूप में पेश कर रहे हैं। अगर जन सुराज को 6% वोट भी मिलते हैं, तो कम से कम 20 से 25 सीटों पर नतीजे पलट सकते हैं। इससे एनडीए और महागठबंधन दोनों के लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं।

वहीं, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एक बार फिर बिहार की राजनीति के केंद्र में हैं। दो दशकों में उन्होंने लालू यादव और नरेंद्र मोदी दोनों के साथ गठबंधन किया और तोड़ा, लेकिन हर बार अपने राजनीतिक संतुलन को साधे रखा।

2005 में सत्ता संभालने के बाद नीतीश ने राज्य में सड़क, बिजली, शिक्षा और महिलाओं के सशक्तिकरण पर जो काम किए, उन्होंने उन्हें “सुशासन बाबू” की पहचान दी। आज बिहार की सड़कें दोगुनी हो चुकी हैं, बिजली कनेक्शन लगभग 100% तक पहुंच गए हैं और लड़कियों की स्कूल उपस्थिति 37% से बढ़कर 60% से अधिक हो गई है।

अब पीके उन्हीं वर्गों को साधने की कोशिश कर रहे हैं | शिक्षित युवा, गैर-यादव ओबीसी और मध्यमवर्गीय मतदाता,  जिन्होंने 2005 में एनडीए की जीत में अहम भूमिका निभाई थी। विश्लेषकों का मानना है कि जन सुराज का असर भाजपा के शहरी और युवा वोट बैंक पर ज्यादा पड़ेगा, खासकर भागलपुर, मुजफ्फरपुर और दरभंगा जैसे क्षेत्रों में।

नीतीश की जदयू फिलहाल हर संभावित परिदृश्य के लिए तैयार है। अगर भाजपा 60 से कम सीटों पर सिमटती है और जदयू 40 के आसपास सीटें निकाल लेती है, तो पीके का प्रभाव निर्णायक होगा। नीतीश तब किंगमेकर बनकर उभर सकते हैं, जो तय करेंगे कि सरकार कौन बनाएगा।

राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि नीतीश केवल “पलटू राम” नहीं, बल्कि बिहार की राजनीति के आधुनिक चाणक्य हैं, जिन्होंने हर बार सत्ता-विरोधी लहर को अपने पक्ष में मोड़ा है। अगर जन सुराज ने अपेक्षित प्रदर्शन कर दिया, तो बिहार की अगली सरकार नीतीश और पीके दोनों की रणनीति से तय होगी।

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