यूक्रेन-रूस युद्ध लगातार जारी रहने के साथ ही साथ भारत का भी रूख रूस प्रति स्पष्ट होने के कारण पूरे विश्व की निगाहें भारत पर टिकी हुई हैं| वही इस युद्ध का परोक्ष या अपरोक्ष रूप से यूक्रेन का साथ दे रहे यूएस ने तो भारत को अपने पक्ष में करने के लिए कई हथकंडे अपनाये, लेकिन उसे सफलता मिलती नहीं दिखाई दी| भारत अपने रुख पर अडिग रहा और उसने अपना रुख भी स्पष्ट किया कि युद्ध किसी भी समस्या का समाधान नहीं, अपितु बातचीत सबसे बेहतर माध्यम है|
इसी क्रम में विदेश मंत्री एस जयशंकर इन दिनों फ्रंट-फुट पर बैटिंग कर रहे हैं। पश्चिमी देशों की मिडिया के तीरों को घुमाकर उन्हीं की तरफ मोड़ देने में उन्हें महारत हासिल हो चुकी है। स्लोवाकिया की राजधानी ब्रातिस्लावा में जयशंकर ने ‘ग्लोबसेक’ के दौरान एनालिस्ट्स के एजेंडे को बेनकाब कर दिया।
जयशंकर ने डिप्लोमेसी के लंबे अनुभव का इस्तेमाल करते हुए 32 वर्ष पहले अक्रीकी राष्ट्रपति नेशनल मंडेला द्वारा कहे गए पंक्ति को अपने तरीके से प्रस्तुत उनको निरुत्तर कर दिया। जयशंकर ने कहा, ‘यूरोप को उस मानसिकता से बाहर निकालना होगा कि उसकी समस्याएं पूरे दुनिया की समस्याएं हैं लेकिन दुनिया की समस्या, यूरोप की समस्या नहीं है।’
इसी संदर्भ में एनालिस्ट्स ने विदेश मंत्री जयशंकर से पूछा था कि अगर चीन के साथ भारत की समस्या बढ़ती है तब यूक्रेन पर भारत के रूख के कारण उसे वैश्विक समर्थन प्राप्त करने में परेशानी आ सकती है। इसी पर विदेश मंत्री ने मंडेला की बात को अपने शब्दों में दोहराई। जयशंकर ने कहा कि भारत को कोई एक पक्ष चुनने की कोई जरूरत नहीं है, ऐसे दुनिया नहीं चलती।
गौरतलब है कि जून 1990 में मंडेला ने अमेरिका का दौरा किया था। मंडेला इससे पहले यासिर अराफात, मुअम्मर गद्दाफी और फिदेल कास्त्रो जैसे नेताओं की तारीफ कर चुके थे क्योंकि उन्होंने दक्षिण अफ्रीका के अश्वेतों के अधिकारों की लड़ाई का समर्थन किया था।
इसी को आधार बनाकर तब अमेरिकी पत्रकारों ने उनसे सवाल किया कि क्या ये तीनों नेता मानवाधिकार के आदर्श हैं और क्या वे चाहेंगे कि तीनों अपने-अपने देश के राष्ट्रपति बनें। जवाब में मंडेला ने जो कहा, वह उनके सबसे मशहूर कथनों में से एक है। मंडेला ने कहा, ‘एक गलती जो कुछ राजनीतिक विश्लेषक करते हैं कि वे मान लेते हैं कि उनके दुश्मन हमारे दुश्मन होने चाहिए।’
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