दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया औपचारिक रूप से शुरू हो गई है। उन पर सरकारी आवास से भारी मात्रा में बिना हिसाब की नकदी मिलने के बाद गंभीर अनुशासनहीनता और भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं। सोमवार को 152 लोकसभा सांसदों ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला को एक हस्ताक्षरित ज्ञापन सौंपा, जिसमें न्यायमूर्ति वर्मा को पद से हटाने की मांग की गई है। वहीं राज्यसभा में भी 50 से अधिक सांसदों ने इसी तरह की याचिका उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ को सौंपी।
महाभियोग प्रस्ताव संविधान के अनुच्छेद 124, 217 और 218 के तहत दाखिल किया गया है। इस प्रस्ताव को सत्तारूढ़ भाजपा, कांग्रेस, टीडीपी, जेडीयू, माकपा समेत कई दलों के सांसदों का समर्थन प्राप्त हुआ है। हस्ताक्षर करने वालों में अनुराग ठाकुर, रविशंकर प्रसाद, राहुल गांधी, राजीव प्रताप रूडी, सुप्रिया सुले, केसी वेणुगोपाल और पीपी चौधरी जैसे नेता शामिल हैं।
राज्यसभा में सभापति धनखड़ ने बताया कि उन्हें भी 50 से अधिक सांसदों के हस्ताक्षर वाला प्रस्ताव मिला है और चूंकि लोकसभा में 152 सांसदों ने पहले ही प्रस्ताव दायर कर दिया है, इसलिए उन्होंने राज्यसभा के महासचिव को आगे की प्रक्रिया शुरू करने के निर्देश दिए हैं।
भारतीय संविधान के तहत किसी उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को पद से हटाने के लिए संसद के दोनों सदनों में तय संख्या में सांसदों द्वारा हस्ताक्षरित प्रस्ताव जरूरी होता है। लोकसभा में कम से कम 100 और राज्यसभा में कम से कम 50 सांसदों का समर्थन आवश्यक है। इसके बाद संसद द्वारा प्रक्रिया पूरी करने के बाद राष्ट्रपति के आदेश से हटाने का प्रावधान है।
केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने पहले ही संकेत दे दिए थे कि महाभियोग को लेकर “सभी दल सहमत” हैं। रविवार को उन्होंने कहा कि 100 से अधिक सांसदों ने इस प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए हैं।
न्यायमूर्ति वर्मा के खिलाफ आरोप मार्च 15 को दिल्ली स्थित उनके आधिकारिक आवास में आग लगने के बाद सामने आए। इस घटना के बाद जली हुई बड़ी मात्रा में नकदी बरामद हुई थी, जिसने पूरे तंत्र में हड़कंप मचा दिया। सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित तीन सदस्यीय जांच समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि न्यायमूर्ति वर्मा और उनके परिवार का उस स्टोररूम पर “सक्रिय नियंत्रण” था जहां से यह नकदी मिली थी। समिति ने निष्कर्ष निकाला कि यह आचरण इतना गंभीर है कि उनके हटाए जाने की सिफारिश की जा सकती है।
हालांकि, न्यायमूर्ति वर्मा ने इन आरोपों से इनकार किया है और सुप्रीम कोर्ट में महाभियोग की सिफारिश को चुनौती दी है। उनका कहना है कि समिति ने तथ्यों की पूरी तरह जांच नहीं की और उनके संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन किया गया।
इस पूरे घटनाक्रम ने न्यायपालिका में कथित भ्रष्टाचार को लेकर देशभर में चिंता बढ़ा दी है। यह मामला ऐसे समय में आया है जब सरकार और न्यायपालिका के बीच पहले से ही टकराव की स्थिति बनी हुई है, और भाजपा के कुछ नेताओं ने सुप्रीम कोर्ट पर “सीमाओं का उल्लंघन” करने का आरोप लगाया है।
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