मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (एमयूडीए) भूमि आवंटन मामले में भ्रष्टाचार की जांच की रिपोर्ट लोकायुक्त ने कर्नाटक उच्च न्यायालय की धारवाड़ पीठ को सौंपी है। पिछली सुनवाई में उच्च न्यायालय ने लोकायुक्त को विस्तृत जांच रिपोर्ट पेश करने के लिए 28 जनवरी तक का समय दिया था।
लोकायुक्त के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक और पुलिस महानिरीक्षक द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट, लोकायुक्त पुलिस अधीक्षक टी.जे. उदेश द्वारा पूर्व में प्रस्तुत प्रारंभिक रिपोर्ट पर आधारित है। इसमें भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 17ए के तहत दर्ज 25 से अधिक व्यक्तियों के बयानों को शामिल करके मामले के महत्वपूर्ण पहलुओं पर प्रकाश डाला गया है।
रिपोर्ट में जमींन के आवंटन में अनियमितताओं पर ध्यान केंद्रित किया गया है, जिसमें विजयनगर में 14 साइटें और जिले के मैसूर तालुका के केसारे गांव में 3.16 एकड़ भूमि जी शामिल है। रिपोर्ट के अनुसार मुख्यमंत्री सिद्धारमैया प्रथम आरोपी है, उनकी पत्नी बी.एम. पार्वती, जो दूसरी आरोपी हैं, उनके भाई बी.एम. मल्लिकार्जुनस्वामी और जे. देवराजू, जिन्होंने मल्लिकार्जुनस्वामी को जमीन बेची थी वे भी शामिल हैं,यह क्रमशः तीसरे और चौथे आरोपी हैं। इस मामले में आरोपियों के बयान भी दर्ज कर लिये गये हैं।
जांच में 1994 से 2024 तक की घटनाओं को शामिल किया गया है, जिसमें ऑडियो और वीडियो रिकॉर्डिंग, फोरेंसिक साइंस लेबोरेटरी (एफएसएल) रिपोर्ट, हार्ड डिस्क, सीडी और पेन ड्राइव जैसे साक्ष्य शामिल हैं। इसमें आरटीसी रिकॉर्ड, भूमि रूपांतरण दस्तावेज, स्वामित्व हस्तांतरण और पत्राचार रिकॉर्ड सहित प्रमुख दस्तावेज भी शामिल हैं।
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इस मामले में भूमि और परिसर के आवंटन में सत्ता के दुरुपयोग और अनियमितताओं के आरोप लगे हैं। पूर्व आयुक्त, स्पीकर, इंजीनियर, नगर नियोजक, विधायक, एमएलसी और तत्कालीन अतिरिक्त उपायुक्त भी इस मामले में शामिल हैं। उम्मीद है कि अदालत रिपोर्ट में संकलित साक्ष्यों और बयानों के आधार पर मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की भूमिका निर्धारित करेगी।
MUDA भूमि आवंटन में अनियमितताएं उजागर होने के बाद, भारतीय जनता पार्टी और जनता दल (सेक्युलर) ने भ्रष्टाचार की निंदा की। विपक्षी नेताओं ने सिद्धारमैया को हटाने की मांग की है और मामले को ठीक से न संभालने का आरोप लगाते हुए लोकायुक्त की जांच की आलोचना की है।