कर्नाटक चुनाव में पीएम मोदी की धुंआधार रैली का कोई असर नहीं हुआ और बीजेपी हार गई। हालांकि, कांग्रेस 38 साल की परम्परा कायम रखते हुए कर्नाटक की सत्ता काबिज हो गई। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह खड़ा हो गया है कि बीजेपी को वो कौन से मुद्दे हैं जो उसके खिलाफ गए। ऐसी कौन सी वजह है जो बीजेपी की हार के कारण बने।
भ्रष्टाचार का मुद्दा: कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस ने जमकर बीजेपी के खिलाफ भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाया। कांग्रेस ने बीजेपी सरकार पर कई भ्रष्टाचार का मामला उठाते हुए जनता के बीच गई। बीजेपी के एक विधायक को भ्रष्टाचार के मामले में जेल भी गए। साथ बीजेपी सरकार में मंत्री रहे एक मंत्री को एप पद से इस्तीफा देना। इस दौरान कांग्रेस ने बीजेपी एनपीआर निशाना साधते हुए “चालीस परसेंट की सरकार” का अभियान भी चलाया। जो कांग्रेस के पक्ष में गया और बीजेपी की हार में मुख्य मुद्दा रहा। अगर इस संबंध में बीजेपी की बात करें तो पार्टी पूरे चुनाव और अन्य मौके पर इससे बचती नजर आई और बाजी कांग्रेस के हाथ लगी।
मुस्लिम आरक्षण का मुद्दा: कर्नाटक में हिजाब,हलाल का मुद्दा शुरू से ही रहा। लेकिन, बीजेपी ने न तो चुनाव में हिजाब का मुद्दा उठाया और न ही टीपू सुल्तान का। मगर चुनाव से पहले बीजेपी ने मुस्लिम आरक्षण को खत्म कर दिया। बीजेपी को उम्मीद थी कि इस मुद्दे पर उसे फ़ायदा मिलेगा। क्योंकि उसने मुस्लिम आरक्षण को ओबीसी समुदाय में बांटने का ऐलान किया था। जबकि क्यों कांग्रेस ने सत्ता में आने पर 50 की जगह 75 प्रतिशत आरक्षण का दायरा बढ़ाने का ऐलान किया था।
बजरंग बली का मुद्दा: गौरतलब है कि कर्नाटक चुनाव में बजरंग बली की एंट्री तब हुई जब कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में कहा कि अगर पार्टी सत्ता में आती है तो बजरंग दल और पीएफआई पर बैन लगाएगी। जिसके बाद बीजेपी ने इस मुद्दे को उठाते हुए बजरंग बली से जोड़ दिया। इस दौरान पीएम मोदी सहित बीजेपी के नेताओं ने कर्नाटक की हर रैली में जय बजरंग बली के नार लगाए। हालांकि यह मुद्दा काम नहीं आया। भले कांग्रेस जो भी कहे लेकिन उसने खुद इस मुद्दे को हवा देने में मुख्य भूमिका निभाई।हालांकि, परिणाम बीजेपी के खिलाफ गया है।
टिकट बंटवारा बना मुद्दा: बीजेपी के टिकट बंटवारे में भी खूब रार देखी गई। बीजेपी के कई नेता पार्टी से टिकट नहीं मिलने पर या तो निर्दलीय सुनाव लड़े या कांग्रेस या अन्य पार्टी में शामिल हो गए। जिसमें बीजेपी के बड़े नेता जगदीश शेट्टार शामिल हैं। उन्होंने टिकट नहीं मिलने पर कांग्रेस का दामन थाम लिया। लेकिन चुनाव में हार गए हैं। इसके अलावा भी कई नेता नाराज रहे।
लोकल नेताओं से किनारा: कर्नाटक चुनाव में स्थानीय नेताओं को बीजेपी ने न के बराबर तवज्जो दी।इस चुनाव में राष्ट्रीय नेताओं ने जमकर पसीना बहाया, जबकि राज्य के नेताओं को ज्यादा मौक़ा नहीं मिला। सबसे बड़ी बात यह रही कि सभी बीजेपी के राष्ट्रीय नेताओं ने हिंदी में अपनी बात कहते रहे जबकि कर्नाटक में कन्नड़ बनाम हिंदी का मुद्दा गरमाया रहा। कांग्रेस नेता सिद्धारमैया जब तब उठाते रहे हैं। इस चुनाव में नंदिनी दूध और अमूल्य दूध पर भी रार देखने को मिला। कांग्रेस ने महंगाई और बेरोजगारी का भी मुद्दा खूब उछाला। कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में 200 यूनिट बिजली, बेरोजगारी,भत्ता ,आदि का ऐलान किया है जो कांग्रेस के लिए अच्छा साबित हुए।
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