बुधवार (20 नवंबर) को जम्मू शहर में विस्थापित कश्मीरी पंडितों की करीब 12 दुकानों को जम्मू विकास प्राधिकरण (जेडीए) ने बिना किसी पूर्व सूचना के ढहा दिया। जिन दुकानों को ढहाया गया, वे शहर में जेडीए की जमीन पर स्थित थीं। इस कारवाई से दुकान मालिकों में आक्रोश है। उन्होंने अधिकारियों के खिलाफ प्रदर्शन कर अधिकारियों पर कारवाई की मांग की है। दरम्यान भाजपा, पीडीपी और अपनी पार्टी ने इस ध्वस्तीकरण की कारवाई पर असंतोष व्यक्त किया है, साथ ही बाधित कश्मीरी पंडितों के पुनर्वसन की मांग की है।
अधिकारियों के अनुसार,मुथी कैंप से सटे जेडीए की जमींन पर कश्मीरी पंडितों ने करीब तीन दशक पहले से दुकानों का निर्माण किया था उसका ध्वस्तीकरण किया जा रहा है। अधिकारियों ने कहा, “पुरानी दुकानें जेडीए की जमीन पर स्थित थीं, जिसने कश्मीरी पंडितों को तीन महीने के भीतर अपनी दुकानें हटाने की समय सीमा दी गई थी, ऐसा न करने पर अतिक्रमण हटा दिया जाएगा ऐसी सुचना दी गई थी।” हालांकि, तीन दशक पहले इलाके में बसे कश्मीरी पंडितों ने अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग करते हुए कहा कि संपत्तियों को ढहाने के संबंध में कोई पूर्वसूचना नहीं मिली।
जेडीए के उपाध्यक्ष ने दावा किया कि संबंधित पक्षों को 20 जनवरी को नोटिस भेजा गया था और उन्होंने दुकानें खाली करने का ‘वादा’ भी किया था। उन्होंने कहा, “नोटिस के बाद चुनाव के कारण हमारी तरफ से कोई कारवाई शुरू नहीं की गई।” उपाध्यक्ष के अनुसार, मुथी क्षेत्र में 25 कनाल भूमि पर कश्मीरी पंडित शरणार्थियों को शुरू में एक कमरे वाले गुंबददार आवासों में बसाया गया था, उसके बाद पुरखू और जगती में दो कमरों वाले अपार्टमेंट आवंटित किए गए। उन्होंने कहा, “चूँकि यहाँ 208 वंचित लोगों के लिए आवास बनाए जाने हैं, इसलिए एक निविदा भी विज्ञापित की गई है। ऐसे मामलों में, हमें भूमि खाली करनी होगी। इसके बावजूद, राज्य ने इन लोगों के लिए दस दुकानें बनाने का आश्वासन दिया है।”
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हालांकि राहत आयुक्त अरविंद करवानी ने आश्वासन दिया कि प्रभावित दुकानदारों के लिए जल्द ही नई दुकानें बनाई जाएंगी। इन लोगों के लिए 10 दुकानें लगभग बनकर तैयार हैं, जो कैंप-2 में हैं। इस घटना को लेकर भाजपा ने एनसी-कांग्रेस गठबंधन सरकार पर सीधा निशाना साधा। भाजपा प्रवक्ता जी.एल रैना ने इस तोड़फोड़ को एनसी-कांग्रेस गठबंधन सरकार की ‘बदले की कारवाई’ कहा है। उन्होंने प्रभावित परिवारों को तत्काल वैकल्पिक व्यवस्था मुहैया कराने की मांग की है। माना जा रहा है कि सरकार बदलने के बाद कश्मीरी पंडित समुदाय पर इस तरह की कारवाई असल में राजनीतिक बदले की भावना का हिस्सा है।