महाकुंभ की संगम नगरी यानी प्रयागराज में ज्योतिष महाकुंभ महोत्सव’ का आयोजन किया गया है जहां भारत के कौने कौने से कई ज्योतिषाचार्य शामिल होने के लिए आएं है, यहां सभी ज्योतिष शास्त्र, लाल किताब और वास्तु के अद्भुत विज्ञान के बारे में अपनी राय रख रहे हैं| महोत्सव में ज्योतिष शास्त्र व गूढ़ रहस्यों के साथ-साथ वैदिक ज्योतिष, मंत्रों का महत्व, टैरो कार्ड और आधुनिकता में छिपे ज्योतिष के प्राचीन रहस्य जैसे विषयों पर चर्चा होगी। कार्यक्रम का शुभारंभ मंत्री नंद गोपाल गुप्ता नंदी ने दीप प्रज्वलन कर किया। प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य कार्यक्रम का सपामन करेंगे।
‘विज्ञान की सरहद जहां खत्म होती है, ज्योतिष वहां से शुरू होता है : ज्योतिष की चर्चा ऋगवेद के समय से हो रही है। जीवन की योजना बनाने में एक कारक ज्योतिष बनता है। नौ ग्रहों को तीन समूहों में विभाजित किया जाता है। जब कुंडली बनती है, तब आपके जीवन की महत्वपूर्ण बातें तय हो जाती हैं। पूर्व जन्मों का प्रारब्ध (पूर्व जन्म के कर्मों का फल) इस जन्म के सत्कर्मों से ही ठीक हो पाता है।
ज्योतिषी-खगोलशास्त्री वराह मिहिर के बनाए सिद्धांत को सौ फीसदी सही माना जाता है, जहां विज्ञान की सरहद खत्म होती है, ज्योतिष वहां से शुरू होता है। ज्योतिष धोखेबाजों का धंधा नहीं है। यह प्रतिष्ठित हुनर है। जीवन को बेहतर तरीके से जीने की पद्धति में ज्योतिष मदद करता है। ज्योतिष में अंधविश्वास की कोई जगह नहीं है। वैदिक काल में एक समय ऐसा आया, जब कर्मकांड का प्रभाव बहुत बढ़ गया। फिर अंधविश्वास शुरू हुआ।
नाड़ी और नक्षत्र विशेषज्ञ डॉ. संजीव कुमार श्रीवास्तव: ज्योतिष एक तरह से जीवन का जीपीएस है। इतिहास में बहुत से ऐसे राज हैं, जो अब तक पूरी तरह सामने नहीं आ पाए हैं। पहले राजा-महाराजाओं को नक्षत्रों की गणना से पता चल जाता था कि कब युद्ध होने के आसार हैं और कब अकाल पड़ने वाला हैं।
आजकल हम ग्रहों और राशियों पर ही ध्यान केंद्रित करते हैं, लेकिन नक्षत्रों पर ध्यान नहीं देते। 27 नक्षत्र हैं। जब इन्हें भी देखा जाता है तो भविष्य बताना और सटीक हो जाता है। हर धर्म में ज्योतिष शास्त्र को लेकर सम्मान का भाव रहता है। ज्योतिष अंधविश्वास नहीं है, विशुद्ध विज्ञान है। जहां तक काल सर्प दोष, मांगलिक दोष और पितृ दोष की बात है तो इस पर मंथन करने और अनुसंधान करने की जरूरत है। सिर्फ एक दोष होने से आपकी किस्मत नहीं बदल जाती, और भी बहुत से कारण होते हैं।
वही, दूसरी ओर ज्योतिषाचार्य आचार्य आनंद ने कहा कि ज्योतिष वेदों का अंग है। ज्योतिष वेदों का नेत्र है। तिथिर्वारश्च नक्षत्र योगः करण मेव च यानी ज्योतिष पांच अंगों को मिलकर बना है- तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण। ज्योतिष को आगे बढ़ने की जरूरत नहीं है। ज्योतिष तो व्याप्त है। यह श्वास की तरह है। इसे प्रचार-प्रसार की आवश्यकता नहीं है। ज्योतिष तो सनातन है। ऋगवेद में ज्योतिष के बारे में स्पष्ट तौर पर लिखा है कि यह ज्योतिष विद्या 83 हजार वर्ष पुरानी है।
ज्योतिष शास्त्र के बारे में मंत्री नंद गोपाल गुप्ता नंदी ने कहा कि कुछ लोग अपने-अपने तर्क देते हैं, लेकिन मेरा निजी अनुभव अच्छा रहा है। मेरे सामने कई संकट आए, लेकिन एक ज्योतिषी ने मेरे बारे में जो भविष्यवाणी की थी, वो सही साबित हुई।
उन्होंने सनातन विद्या पर प्रकाश डालते हुए कहा कि ज्योतिष की सबसे सुंदर बात है कि अगर कोई दोष है या ग्रहों की दिशा विपरीत है तो उसका समाधान भी मौजूद है। जैसे डॉक्टर दवा देता है, वैसे ही ज्योतिषाचार्य भी ग्रहों की दशा के हिसाब से निदान बताते हैं। जब रामलला के लिए भव्य-दिव्य मंदिर बना, तब काल गणना के अनुसार मुहूर्त निकालकर ही मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा हुई।
यह भी पढ़ें-