महाराष्ट्र सरकार अब राज्य के पांच सबसे बड़े कृषि उत्पन्न बाजार समितियों (APMCs) की निगरानी के लिए एक “विपणन मंत्री” (Minister for Marketing) नियुक्त करने जा रही है। यह मंत्री इन राष्ट्रीय महत्व वाले बाजारों (Market of National Importance – MNI) की दैनिक गतिविधियों पर निगरानी रखेगा और उनका संचालन सुनिश्चित करेगा।
यह कदम केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तुत मॉडल एक्ट की अवधारणा पर आधारित है, जिसके तहत महाराष्ट्र सरकार ने पांच प्रमुख कृषि बाजारों को राष्ट्रीय बाजार घोषित करने की तैयारी की है।
प्रस्तावित पांच प्रमुख बाजार समितियों में नवी मुंबई APMC, पुणे, नागपुर, सोलापुर, लातूर यह प्रमुख बाजार शामिल हैं। जानकारी के अनुसार कुछ और बाजारों को भी इस सूची में शामिल किया जा सकता है। ये बाजार वे हैं जिनका वार्षिक कारोबार 80,000 मीट्रिक टन से अधिक है और जहां 30% से अधिक कृषि उत्पाद दो या उससे अधिक राज्यों से आते हैं।
महाराष्ट्र में कुल 305 बाजार समितियाँ कार्यरत हैं, लेकिन केवल यही पांच MNI की पात्रता रखते हैं। इन बाजारों की दैनिक गतिविधियों का नियंत्रण अब राज्य सरकार के हाथ में होगा, न कि निर्वाचित बाजार समितियों के पास जैसा अब तक होता रहा है।
माना जा रहा है कि मंत्रिमंडल की मंजूरी के बाद इस प्रस्ताव पर अंतिम मुहर लगेगी। विपणन मंत्री जयकुमार रावल (भाजपा) की अध्यक्षता वाली कैबिनेट उप-समिति ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी है।
यह निर्णय राजनीतिक हलकों में खलबली मचा सकता है। राज्य के बड़े बाजार, जैसे पुणे (जिसे उपमुख्यमंत्री अजित पवार नियंत्रित करते हैं) और लातूर (कांग्रेस नेता अमित देशमुख के नियंत्रण में), वर्षों से कांग्रेस और एनसीपी नेताओं के प्रभाव में रहे हैं। नवी मुंबई APMC, जो राज्य की सर्वोच्च संस्था है, पर भी एनसीपी और कांग्रेस नेताओं का वर्चस्व रहा है। नई व्यवस्था से इन स्थानीय राजनीतिक नेताओं की पकड़ कमजोर हो सकती है। एकीकृत लाइसेंस प्रणाली लागू होने के बाद व्यापारी पूरे राज्य में कहीं भी कृषि उत्पाद की खरीद-बिक्री कर सकेंगे, जो फिलहाल संभव नहीं है।
विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा-नेतृत्व वाली महायुति सरकार यह कदम स्थानीय राजनीतिक ताकतों से नियंत्रण हटाने और बाजार समितियों में राज्य सरकार की सीधी दखल बढ़ाने के उद्देश्य से उठा रही है। उपमुख्यमंत्री अजित पवार, जो एनसीपी (अजित गुट) के नेता हैं, पुणे बाजार पर नियंत्रण खो सकते हैं।
यह कदम निश्चित ही महाराष्ट्र की राजनीतिक और कृषि व्यापार व्यवस्था में एक नया अध्याय जोड़ने जा रहा है। किसानों की नजरें राज्य मंत्रिमंडल की औपचारिक मंजूरी पर टिकी है, जिसके बाद यह बड़ा प्रशासनिक और राजनीतिक बदलाव अमल में लाया जाएगा।
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