सारा मामला प्रशासन के हाथ में : पिछले चार महीने से स्थानीय निकाय चुनाव का मामला सुप्रीम कोर्ट में है|सर्वोच्च न्यायालय के 2006 के आदेश के अनुसार स्थानीय निकायों का कार्यकाल अधिकतम 6 माह के लिए बढ़ाया जा सकता है। उसके बाद चुनाव होना चाहिए।अब महाराष्ट्र में ये चुनाव पिछले दो-तीन साल से टाले जा रहे हैं| सारा मामला प्रशासन के हाथ में चला गया है। तो सुप्रीम कोर्ट क्या फैसला करेगा? इस पर सबका ध्यान है।
स्थानीय निकायों के चुनाव दो कारणों से कोर्ट में अटके हैं या तो ओबीसी आरक्षण को हरी झंडी मिल गई लेकिन शिंदे सरकार पूर्व में घोषित 92 नगर परिषदों में इस आरक्षण को दिलाने के लिए कोर्ट चली गई| इसके साथ ही सरकार ने 4 अगस्त को अध्यादेश लाकर मविआ के जमाने में वार्ड के ढांचे में बदलाव किया| जैसा कि सुप्रीम कोर्ट ने 22 अगस्त को आदेश दिया था, अब तक मामले की सुनवाई नहीं हुई है।
नगर निगम चुनाव अब मानसून के बाद ही? : माविआ सरकार के वार्ड ढांचे को अगर सुप्रीम कोर्ट से मंजूरी मिल जाती है तो चुनाव का रास्ता साफ हो सकता है। लेकिन 23 नगर निगम, 207 नगर निगम, 25 जिला परिषद, 284 पंचायत समिति के चुनाव होने हैं।
चुनाव आयोग इसे दो चरणों में ले सकता है, कुछ मानसून से पहले और कुछ मानसून के बाद… दूसरी संभावना यह है कि अगर अदालत शिंदे सरकार के वार्ड ढांचे को मंजूरी देती है, तो चुनाव आयोग को फिर से प्रक्रिया करने में कुछ समय लगेगा| इसलिए ये चुनाव मानसून के बाद ही होने की संभावना है। मुंबई-पुणे जैसे नगर निकाय चुनाव इसी अक्टूबर तक हो सकते हैं।
ऐसा लगता है कि ये स्थानीय निकाय चुनाव पहले कोरोना के कारण, बाद में ओबीसी राजनीतिक आरक्षण के कारण और अब सरकार बदलने के कारण रुके हुए हैं। अहम बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट पिछले मई में हुए इन चुनावों को लेकर काफी जिद पर अड़ा हुआ था। सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि तत्काल चुनाव कराए जाएं, बारिश के मौसम में भी चुनाव कराने में क्या दिक्कत है|
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