केंद्रीय मंत्री नारायण राणे के निधन के बाद पूर्व सांसद नीलेश राणे ने सक्रिय राजनीति से संन्यास लेने की घोषणा कर दी, जिसके बाद राजनीतिक गलियारों में तरह-तरह की चर्चाएं शुरू हो गईं। नीलेश राणे ने 2009 से 2014 तक पांच वर्षों तक रत्नागिरी-सिंधुदुर्ग लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। लेकिन 2014 के चुनाव में उन्हें शिव सेना ठाकरे के विनायक राउत से हार मिली|
कुछ दिनों से कोंकण क्षेत्र में नीलेश राणे के दोबारा चुनाव मैदान में उतरने की चर्चा शुरू हो गई थी| हालांकि, दशहरे के दिन नीलेश राणे ने अचानक राजनीति से बाहर होने का ऐलान कर दिया| अगर हम यह अनुमान लगाना चाहें कि वास्तव में इस संन्यास के पीछे क्या है, तो हमें 7-8 महीने पीछे जाना होगा। आँगनवाड़ी मेले का जलवा आँगनवाड़ी मेले के दौरान आयोजित किया गया। मार्च का आयोजन बीजेपी नेता रवींद्र चव्हाण ने किया था|
इसमें कोंकण की ग्राम पंचायतों से लेकर नगर पालिकाओं तक के जन प्रतिनिधियों को मंच पर रखा गया था| उस वक्त रवींद्र चव्हाण ने देवेंद्र फडणवीस के सामने कहा था, ‘यही हमारी ताकत है|’ नारायण राणे ने इस पर खुलकर टिप्पणी की और कहा, ‘यह भीड़ 6 महीने के लिए नहीं है बल्कि पिछले 33 साल से मैं गांव-गांव, घर-घर पहुंचा हूं| सिंधुदुर्ग के संरक्षक मंत्री रवींद्र चव्हाण और राणे परिवार के बीच पिछले कुछ महीनों से स्थानीय स्तर पर चर्चा हो रही है। सिंधुदुर्ग में यह भी चर्चा है कि राणे के समर्थकों को संरक्षक मंत्री रविंद्र चव्हाण द्वारा निराश किया जा रहा है।
हाल ही में सिंधुदुर्ग दौरे पर गए भाजपा प्रदेश अध्यक्ष चन्द्रशेखर बावनकुले ने बयान दिया था कि टिकट उन्हीं को मिलेगा, जिनकी किस्मत में लिखा हो| नीलेश राणे कल तक कुडाल-मालवन निर्वाचन क्षेत्र से सक्रिय थे। लेकिन, दशहरे पर अचानक उन्होंने ऐलान कर दिया कि वह राजनीति से संन्यास ले रहे हैं| इसके पीछे की वजह भाजपा की अंदरूनी खींचतान है, आने वाले समय में जोर-जबरदस्ती की राजनीति साफ हो जाएगी|
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