देश में नाबालिगों द्वारा बढ़ते जघन्य अपराधों के मद्देनज़र दिल्ली के भाजपा सांसद मनोज तिवारी ने किशोर न्याय कानून में बड़े बदलाव की तैयारी शुरू कर दी है। भाजपा तिवारी ने शुक्रवार (5 दिसंबर) को घोषणा की कि वे जुवेनाइल जस्टिस एक्ट, 2015 में संशोधन का प्रस्ताव रखते हुए किशोर आयु सीमा 18 से घटाकर 14 वर्ष करने के लिए लोकसभा में प्राइवेट मेंबर बिल पेश करेंगे। उनका तर्क है कि 15–17 वर्ष की आयु के अपराधियों द्वारा हत्या, सामूहिक हिंसा और गंभीर अपराधों में शामिल होने की घटनाएँ लगातार बढ़ रही हैं—और मौजूदा कानून ऐसे मामलों में पर्याप्त दंड सुनिश्चित नहीं कर पा रहा है।
तिवारी ने कहा, “17 वर्ष तक के बच्चों को जुवेनाइल माना जाता है। लेकिन मैं लगातार देख रहा हूँ—निर्भया केस से लेकर हाल के मामलों तक—15 से 17 वर्ष के अपराधी बढ़ रहे हैं। ऐसे कई उदाहरण हैं जहाँ एक बच्चे ने तीन हत्याएँ कीं, सुधार गृह गया और बाहर आकर फिर हत्या की। इसलिए हम प्रस्ताव कर रहे हैं कि जघन्य अपराधों के लिए नाबालिग की आयु 14 वर्ष की जाए।”
उन्होंने कहा कि वे इस मुद्दे पर लंबे समय से अध्ययन कर रहे हैं और वही गंभीर विषय चुनते हैं जिन्हें प्राइवेट बिल के ज़रिए संसद में उठाना चाहिए। गुरुग्राम में 17 वर्षीय छात्र ने अपने पिता की लाइसेंसशुदा पिस्तौल से अपने ही सहपाठी को गोली मार दी थी। आरोपी और उसका साथी, दोनों जुवेनाइल, कुछ ही घंटों में गिरफ्तार हो गए।
10 अक्टूबर को पटेल नगर में गैंग से जुड़े किशोरों के बीच झगड़े में एक युवक को चाकू मारकर गंभीर रूप से घायल कर दिया गया। इस मामले में दिल्ली पुलिस ने 3 नाबालिगों को गिरफ्तार किया, जो हत्या के प्रयास के आरोप में वांछित थे। पुलिस के अनुसार लड़ाई शारदा इलेक्ट्रिकल, बलजीत नगर में हुई, जहाँ घायलों को अस्पताल ले जाया गया और वह बयान देने की स्थिति में नहीं था। इन सभी मामलों को गिनाते हुए तिवारी ने कहा कि देश में कई गंभीर अपराध ऐसे बच्चों द्वारा किए जा रहे हैं, जिनमें उम्र के आधार पर उन्हें वयस्क अपराधियों जैसा दंड नहीं मिल पाता।
तिवारी के इस प्रस्ताव के बाद किशोर न्याय प्रणाली पर बड़ा राष्ट्रीय विमर्श शुरू होने की संभावना है। वर्तमान कानून के तहत 16–18 वर्ष के किशोरों पर वयस्क की तरह मुकदमा केवल अत्यंत जघन्य अपराधों में ही चल सकता है, वह भी जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड की अनुमति से।
अगर प्रस्तावित संशोधन पेश होता है, तो भारत में जघन्य अपराधों के मामलों में सबसे कम उम्र की कानूनी सीमा स्थापित हो जाएगी, जिससे कानून, मनोविज्ञान और बाल-सुरक्षा विशेषज्ञों के बीच व्यापक बहस छिड़ना तय है। तिवारी ने कहा कि उनका उद्देश्य अपराध रोकना और पीड़ितों को न्याय दिलाना है, न कि किसी बच्चे को अनावश्यक कठोरता से दंडित करना। यह बिल शीतकालीन सत्र में पेश होने की संभावना है, जिस पर राजनीतिक और कानूनी दोनों स्तरों पर गहन चर्चा होगी।
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