नई दिल्ली में शुक्रवार(10 अक्तूबर) को हुए तालिबान के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी की प्रेस कॉन्फ्रेंस को लेकर विवाद बढ़ गया है। इस कार्यक्रम में महिला पत्रकारों को प्रवेश न देने की खबरों के बीच भारत के विदेश मंत्रालय (MEA) ने साफ किया है कि इस प्रेस मीट में भारत सरकार की कोई भूमिका नहीं थी। विदेश मंत्रालय ने शनिवार (11 अक्टूबर) को जारी बयान में कहा कि “मुत्ताकी के प्रेस कॉन्फ्रेंस के लिए निमंत्रण अफगानिस्तान के मुंबई स्थित कॉन्सुल जनरल की ओर से भेजे गए थे, जो इस दौरे के दौरान दिल्ली में मौजूद थे।” मंत्रालय ने यह भी स्पष्ट किया कि यह कार्यक्रम अफगान दूतावास के परिसर में हुआ था, जो भारत सरकार के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता।
यह दौरा तालिबान शासन के 2021 में सत्ता संभालने के बाद मुत्ताकी की भारत यात्रा का पहला आधिकारिक दौरा था। उन्होंने शुक्रवार को विदेश मंत्री एस. जयशंकर से मुलाकात की और उसके बाद यह प्रेस कॉन्फ्रेंस की।
सोशल मीडिया पर कई महिला पत्रकारों ने बताया कि उन्हें इस कार्यक्रम में शामिल नहीं होने दिया गया। कुछ पत्रकारों ने यह भी दावा किया कि उन्हें प्रेस कॉन्फ्रेंस स्थल के बाहर ही रोक दिया गया। इससे महिला पत्रकारों को लेकर तालिबान के भेदभावपूर्ण रवैये पर फिर से सवाल उठ खड़े हुए हैं।
गौरतलब है कि अफगानिस्तान में तालिबान सरकार महिलाओं पर लगातार कठोर पाबंदियां लगा रही है। उन्हें विश्वविद्यालयों में पढ़ाई करने से लेकर काम करने तक पर रोक है। तालिबान शासन में महिलाओं के बुनियादी अधिकार लगभग खत्म कर दिए गए हैं।
इस बीच जयशंकर ने मुत्ताकी से मुलाकात के दौरान अफगानिस्तान में भारत के तकनीकी मिशन को अपग्रेड कर भारत के पूर्ण राजनयिक मिशन ‘एम्बेसी ऑफ इंडिया इन काबुल’ बनाने की घोषणा की। उन्होंने कहा, “भारत अफगानिस्तान की संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता और स्वतंत्रता के प्रति पूरी तरह प्रतिबद्ध है।” जयशंकर ने यह भी कहा कि भारत और अफगानिस्तान “विकास के साझा संकल्प” से जुड़े हैं, जिसे सीमापार आतंकवाद लगातार चुनौती दे रहा है।
दूसरी ओर मुत्ताकी ने कहा, “अफगानिस्तान भारत को अपना करीबी मित्र मानता है। हम किसी को भी अफगानिस्तान की भूमि का इस्तेमाल किसी अन्य देश के खिलाफ करने की अनुमति नहीं देंगे।”
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) से यात्रा छूट मिलने के बाद मुत्ताकी की यह यात्रा संभव हो सकी। विशेषज्ञों के मुताबिक, भारत और तालिबान सरकार के बीच बढ़ते संवाद पर पाकिस्तान की नजरें टिकी हुई हैं, क्योंकि यह कूटनीतिक समीकरणों में नया संतुलन बना सकता है।
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