प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में कहा, “मैं अनुभव कर रहा हूं कि इस कमरे में सैतामा की रफ्तार है, मियागी की मजबूती है, फुकुओका की जीवंतता है और नारा की विरासत की खुशबु है।
उन्होंने अपने गृह राज्य गुजरात का उदाहरण देते हुए बताया कि बीती सदी में गुजराती हीरे के व्यापारी कोबे आए थे, जबकि हमा-मात्सु की कंपनियों ने भारत के ऑटोमोबाइल क्षेत्र में क्रांति लाई। यह उद्यमशीलता दोनों देशों को जोड़ती है। आज ट्रेड, टेक्नोलॉजी, पर्यटन, सुरक्षा, स्किल और संस्कृति के क्षेत्र में नए अध्याय लिखे जा रहे हैं, जो केवल टोक्यो या दिल्ली तक सीमित नहीं, बल्कि राज्यों और प्रांतों की सोच में जीवंत हैं।
प्रधानमंत्री ने अपने 15 साल के गुजरात मुख्यमंत्री कार्यकाल का जिक्र करते हुए कहा कि उन्होंने नीति-आधारित शासन, उद्योग को बढ़ावा, मजबूत बुनियादी ढांचा और निवेश के लिए माहौल बनाने पर ध्यान दिया, जो आज “गुजरात मॉडल” के नाम से जाना जाता है।
उन्होंने जापान के राज्यपालों की जिम्मेदारी को महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि उनके प्रांत टेक्नोलॉजी, मैन्युफैक्चरिंग और नवाचार के केंद्र हैं, कई की अर्थव्यवस्था कई देशों से बड़ी है। इसलिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग का भविष्य उनके हाथों में है।
प्रधानमंत्री इशिबा के साथ लॉन्च की गई ‘स्टेट-प्रांत साझेदारी पहल’ के तहत हर साल तीन भारतीय राज्य और तीन जापानी प्रांतों के प्रतिनिधिमंडल एक-दूसरे का दौरा करेंगे। उन्होंने राज्यपालों को भारत आने का निमंत्रण दिया और साझा प्रगति के लिए सहयोग की अपील की।
प्रधानमंत्री ने युवाओं के कनेक्शन पर जोर देते हुए कहा कि जापान की विश्व प्रसिद्ध यूनिवर्सिटीज में भारतीय छात्रों को लाने और अगले पांच साल में पांच लाख लोगों के आदान-प्रदान के लिए एक एक्शन प्लान लॉन्च किया गया है। साथ ही, 50,000 भारतीय कुशल पेशेवरों को जापान भेजने की योजना है, जिसमें प्रांतों की अहम भूमिका होगी।
उन्होंने आशा जताई कि टोक्यो और दिल्ली नेतृत्व करेंगे और कानागावा-कर्नाटक, आइची-असम, और ओकायामा-ओडिशा मिलकर नई इंडस्ट्री, स्किल, और अवसर बनाएंगे।
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