भारत में अब उच्च शिक्षा का नक्शा बदलने जा रहा है। 50 से अधिक अंतरराष्ट्रीय यूनिवर्सिटियों ने देश में अपने कैंपस खोलने की इच्छा जताई है और इसके लिए यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमीशन (UGC) से औपचारिक मंजूरी मांगी है। शिक्षा मंत्रालय ने यह जानकारी देते हुए कहा कि विदेशी संस्थान अब भारतीय छात्रों को देश में ही वैश्विक स्तर की डिग्री दिलाने के लिए तैयार हैं।
शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने बताया कि देश से हर साल करीब 14 से 15 लाख छात्र उच्च शिक्षा के लिए विदेश जाते हैं, जिससे भारी मात्रा में पूंजी बाहर जाती है। सरकार का मकसद अब छात्रों को वही गुणवत्ता देश में ही मुहैया कराना है। उन्होंने कहा, “यह कदम छात्रों के हित में है। विदेशी विश्वविद्यालयों को मंजूरी हमारी शिक्षा व्यवस्था के तय मानकों पर मूल्यांकन के बाद दी जाएगी।”
फिलहाल तीन विदेशी विश्वविद्यालय भारत में काम कर रहे हैं, लेकिन नई शिक्षा नीति (NEP 2020) के तहत दरवाज़े और व्यापक किए गए हैं। यूजीसी की तरफ से तैयार फ्रेमवर्क में विदेशी यूनिवर्सिटियों को संस्थागत स्वायत्तता दी जाएगी, जिससे वे अपने कोर्स, फीस और फैकल्टी को लेकर स्वतंत्र होंगे।
बताया गया है कि जिन यूनिवर्सिटियों ने दिलचस्पी दिखाई है, वे अब राज्य सरकारों के साथ भी बातचीत कर रही हैं ताकि ज़मीन और लोकल इन्फ्रास्ट्रक्चर की तैयारी हो सके। शिक्षा मंत्रालय का मानना है कि इस पहल से न केवल छात्रों को अंतरराष्ट्रीय शिक्षा देश में ही मिलेगी, बल्कि भारत एक ग्लोबल एजुकेशन डेस्टिनेशन के रूप में उभरेगा।
सरकार ने यह भी स्पष्ट किया है कि अगर कोई विदेशी संस्था नियमों का उल्लंघन करती है, तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। लेकिन फिलहाल संकेत साफ हैं — भारत में पढ़ाई का भविष्य अब और वैश्विक होने जा रहा है।
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