जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए बर्बर इस्लामी जिहादी आतंकी हमले ने न केवल देशवासियों को झकझोर दिया है, बल्कि इस त्रासदी की गूंज अब कूटनीति के गलियारों में भी सुनाई दे रही है। केंद्र सरकार की शीर्ष मंत्री, वित्त और कॉर्पोरेट मामलों की मंत्री निर्मला सीतारमण ने अमेरिका-पेरू की अपनी आधिकारिक यात्रा को बीच में छोड़कर भारत लौटी है।
वित्त मंत्रालय ने बुधवार(23 अप्रैल) को जानकारी दी कि निर्मला सीतारमण अमेरिका और पेरू में चल रहे द्विपक्षीय व्यापार और आर्थिक संवाद को स्थगित कर भारत लौट रही हैं। एक्स पर मंत्रालय की पोस्ट थी — “केंद्रीय वित्त और कॉर्पोरेट मामलों की मंत्री निर्मला सीतारमण अमेरिका-पेरू की अपनी आधिकारिक यात्रा बीच में ही छोड़ रही हैं। इस कठिन और दुखद समय में अपने लोगों के साथ रहने के लिए वह जल्द से जल्द भारत वापस आ रही हैं।”
वित्त मंत्री का यह कदम केवल प्रशासनिक जिम्मेदारी नहीं बल्कि एक भावनात्मक और नैतिक निर्णय भी है। उन्होंने खुद एक्स पर लिखा — “जम्मू-कश्मीर के पहलगाम से दिल दहला देने वाली खबर। दुख व्यक्त करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं। मैं आतंकवादी कृत्य की निंदा करती हूं।” साथ ही उन्होंने पीड़ितों के परिवारों के प्रति संवेदना व्यक्त करते हुए लिखा, “घायलों के शीघ्र स्वस्थ होने की प्रार्थना करती हूं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शब्दों को दोहराती हूं — ‘इस जघन्य कृत्य के पीछे जो लोग हैं, उन्हें न्याय के कटघरे में लाया जाएगा। उनका नापाक एजेंडा कभी सफल नहीं होगा। आतंकवाद से लड़ने का हमारा संकल्प अडिग है और यह और भी मजबूत होगा।”
बता दें की घने जंगलों से निकले इस्लामी आतंकियों ने शांत माहौल में छुट्टियां मना रहे निर्दोष पर्यटकों को उनका धर्म पूछकर कपडे उतार कर पुष्टी की, के वे हिंदू है या नहीं, जिसके बाद गैर-मुसलमान पर्यटकों को मौत के घाट उतारा गया। शुरुआती रिपोर्टों के इस हमले की जिम्मेदारी लश्कर-ए-तैयबा के संगठन ‘द रेजिस्टेंस फ्रंट’ ने ली है। हमले के बाद से जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा चाक-चौबंद कर दी गई है, हाई अलर्ट जारी है और संवेदनशील स्थानों पर अतिरिक्त सुरक्षाबल तैनात कर दिए गए हैं। दरम्यान बारामुल्ला के उरी सेक्टर में घुसपैठ करते 2 आतंकियों को सुरक्षादलो ने ढेर किया है।
वित्त मंत्री का विदेश दौरे को रद्द कर लौटना इस बात का स्पष्ट संकेत है — जब देश आंसुओं में डूबा हो, तब कूटनीति और व्यापार इंतज़ार कर सकते हैं, लेकिन जनता की पीड़ा में शामिल होना सबसे पहला कर्तव्य होता है।
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