पहलगाम की हरी-भरी घाटी में जो खून की बरसात ने देश को झकझोर कर रख दिया है। बैसारन घाटी में हुए भीषण आतंकी हमले में जब आतंकियों ने लोगों से उनके नाम पूछे, धर्म देखा, पैंट उतरवाकर ‘कलावा’ तलाशा, और फिर गोलियां दागीं—तो यह साफ हो गया कि यह हमला सिर्फ मानवता पर नहीं, एक खास धर्म और पहचान पर निशाना था।
जहां एक ओर देश शोक और आक्रोश में डूबा है, वहीं दूसरी ओर जनसत्ता दल लोकतांत्रिक के अध्यक्ष रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया ने इस हमले को लेकर तीखा और बेलौस बयान दिया है। उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा, “कश्मीर में हिन्दू तो पहले ही मारे काटे जा चुके हैं, जो जान बचाकर भागने में सफल रहे वे अपने ही देश में आज भी शरणार्थी हैं।”
राजा भैया ने कश्मीर घूमने जाने वाले पर्यटकों को चेतावनी देते हुए कहा, अब अपने पर्यटक भाई बहनों से कहना चाहूंगा कि जब हम अपने बच्चों को गर्मी की छुट्टियों में कश्मीर घुमाने ले जाते हैं तो न सिर्फ अपने परिवार के जीवन को खतरे में डालते हैं बल्कि आतंकवादी, अलगाववादी, जेहादी ताकतों को आर्थिक रूप से मजबूत करते हैं, इतना ही नहीं हम अनजाने में अपने ही ख़िलाफ़ छिड़े ‘जेहाद’ को अपनी ही जेब से फ़ंड करते हैं। डल झील में नावों पर सपरिवार सेल्फी लेकर हम विश्व को ये संदेश देते हैं कि कश्मीर में अमन चैन है, लेकिन आज फिर एक बार असलियत सबके सामने आ गयी।
उनके अनुसार, इस हमले ने साबित कर दिया कि आतंकवाद का चेहरा धार्मिक है, और कश्मीर की सच्चाई बहुत ज़्यादा कड़वी है। उन्होंने दावा किया कि “लगभग पूरी घाटी में अलगाववादी मानसिकता व्याप्त है—कोई खुलकर, तो कोई छुपकर आतंक का समर्थन करता है।”
“जिन पर्यटकों की हत्या की गई, उनकी पहचान उनके कपड़ों, धर्मचिन्हों और शरीर की तलाशी से की गई।” यह केवल नरसंहार नहीं था, यह पूर्व नियोजित धार्मिक वध था।
राजा भैया का यह बयान निश्चित ही एक तीखी बहस को जन्म देगा—क्या कश्मीर अब भी सुरक्षित पर्यटन स्थल रह गया है? क्या हमें अपनी छुट्टियों की योजनाओं पर पुनर्विचार करना चाहिए? और सबसे बड़ा सवाल—क्या अब आतंकवाद का कोई मज़हब नहीं, या बहुत स्पष्ट मज़हब है?
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