कांग्रेस सांसद राहुल गाँधी एक बार फिर अपने बयान को लेकर चर्चा में हैं। कोलंबिया दौरे के दौरान उन्होंने एक विश्वविद्यालय में भाषण देते हुए ऐसा तकनीकी तर्क दिया, जिसने सोशल मीडिया पर उन्हें ट्रोल्स के निशाने पर ला दिया। राहुल ने कहा कि “कारें इसलिए भारी होती हैं ताकि एक्सीडेंट के दौरान उनका इंजन ड्राइवर को कुचल न जाए, जबकि मोटरसाइकिल का इंजन दुर्घटना में खुद अलग हो जाता है और सवार को नुकसान नहीं पहुँचाता।”
यह बयान उन्होंने कोलंबिया के एनविगेडो स्थित AIA विश्वविद्यालय में छात्रों को संबोधित करते हुए दिया। राहुल गाँधी विकेंद्रीकरण (Decentralization) की अवधारणा समझाने के लिए मोटर इंजीनियरिंग और क्रैश सेफ्टी के उदाहरण दे रहे थे। लेकिन उनके उदाहरण ने तर्क की जगह मज़ाक को बन गया।
राहुल ने कहा, “एक यात्री को ले जाने के लिए आपको 3,000 किलोग्राम की कार की जरूरत पड़ती है, लेकिन 100 किलोग्राम की मोटरसाइकिल दो यात्रियों को ले जा सकती है। तो ऐसा क्यों है?” उन्होंने खुद ही उत्तर देते हुए कहा कि कार का वजन इसलिए ज्यादा होता है ताकि दुर्घटना की स्थिति में इंजन ड्राइवर को कुचलने से बचाया जा सके। उन्होंने आगे कहा, “मोटरसाइकिल में जब कोई दुर्घटना होती है तो इंजन आपसे अलग हो जाता है। कार में इंजन अंदर आ जाता है, इसलिए कारें भारी बनाई जाती हैं ताकि इंजन आपको मार न सके।”
I haven’t heard this much gibberish in one go. If anyone can decode what Rahul Gandhi is trying to say here, I would be glad to be enlightened. But if you are as amused as I am, rest assured, you are not alone! pic.twitter.com/DlECPO0tcU
— Amit Malviya (@amitmalviya) October 2, 2025
इसके बाद राहुल ने इलेक्ट्रिक वाहनों को समाधान बताते हुए कहा कि उनमें कई मोटर लगाई जा सकती हैं, जो शक्ति का विकेंद्रीकरण करती हैं, “इलेक्ट्रिक मोटर शक्ति के विकेंद्रीकरण का प्रतीक है।” राहुल गाँधी का यह बयान वायरल होते ही सोशल मीडिया पर लोग उनकी खिल्ली उड़ाने लगे। बीजेपी नेताओं ने इसे “गिबरिश” यानी बकवास बताया और कहा कि राहुल विज्ञान की बुनियादी समझ से भी दूर हैं। कई नेटिज़न्स ने राहुल के बयान को “टेक्निकल कॉमेडी” बताते हुए मीम्स शेयर किए।
असलियत यह है कि राहुल गाँधी के तर्क में कई तथ्यों की गलतियाँ हैं। आम पैसेंजर कारों का वजन आमतौर पर 1,000 से 2,000 किलो के बीच होता है, न कि 3,000 किलो जैसा उन्होंने कहा। भारत में मारुति ऑल्टो जैसी छोटी कारों का वजन करीब 700 से 800 किलो होता है, जबकि टाटा नेक्सॉन या हुंडई क्रेटा जैसी एसयूवी का वजन लगभग 1,200 से 1,500 किलो तक होता है।
3,000 किलो का वजन केवल बड़े अमेरिकी ट्रकों या हमर जैसी हैवी गाड़ियों का होता है। वहीं, मोटरसाइकिलों का औसत वजन 110 से 250 किलो के बीच होता है, न कि सिर्फ 100 किलो जैसा राहुल गाँधी ने दावा किया। वाहन का वजन उसके ढाँचे, सुरक्षा फीचर्स, इंजन की क्षमता और स्थिरता पर निर्भर करता है — न कि इंजन को ड्राइवर से दूर रखने के उद्देश्य से।
वाहन का वजन उसके ढाँचे, सुरक्षा फीचर्स, इंजन क्षमता और स्थिरता पर निर्भर करता है — न कि इंजन को ड्राइवर से दूर रखने के उद्देश्य से। कारों में क्रैश ज़ोन, एयरबैग, और रिइनफोर्स्ड स्टील फ्रेम जैसी तकनीकें ड्राइवर की सुरक्षा के लिए होती हैं, न कि वाहन का वजन बढ़ाने के लिए।
कोलंबिया विश्वविद्यालय में राहुल गाँधी का यह ‘तकनीकी’ भाषण अब अंतरराष्ट्रीय मीडिया में भी चर्चा का विषय बन गया है। जहां उनके समर्थक इसे “रचनात्मक सोच” बताने की कोशिश कर रहे हैं, वहीं आलोचक कह रहे हैं कि राहुल अपने “ज्ञान प्रयोगों” से खुद अपनी राजनीतिक साख को कमजोर कर रहे हैं।
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