इंडिया” गठबंधन में सीट शेयरिंग को लेकर माथापच्ची जारी है। लेकिन इसका अभी तक हल नहीं निकल पाया है। इस बीच कहा जा रहा है कि यूपी में अखिलेश यादव 60 सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी में है। जबकि, 18 सीटें कांग्रेस और जयंत चौधरी की पार्टी राष्ट्रीय लोकदल के लिए छोड़ेंगे। इससे साफ़ है कि यूपी में सीट शेयरिंग पर दादागिरी समाजवादी पार्टी की ही चलने वाली है।
अखिलेश यादव दो दिन पहले ही कहा था कि हम उत्तर प्रदेश में सीट मांगेंगे नहीं, बल्कि देंगे। अखिलेश यादव बार बार त्याग और बड़ा दिल दिखाने की बात कर रहें हैं। उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा लोकसभा सीट हैं। यहां 80 सींटें है। कहा जाता है कि दिल्ली की सत्ता की चाभी यूपी से ही होकर गुजरती है। अखिलेश यादव ने गठबंधन में होने के बाद भी जिस तरह से अपना तेवर दिखा रहे हैं। उससे कहा जा सकता है कि अखिलेश यादव के इस कदम से कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ने वाली है। गठबंधन में सबसे बड़ी पार्टी का दावा करने वाली कांग्रेस को अखिलेश यादव के तेवर के सामने घुटने टेकने पड़ सकते हैं।
वहीं, कांग्रेस का कहना है कि यूपी में 2009 के लोकसभा चुनाव के परिणाम के आधार पर सीट बंटवारा होना चाहिए। दरअसल, 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने यूपी 21 सीटें जीती थी। इसलिए कांग्रेस चाहती है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में भी उसी पैटर्न पर सीट बंटवारा हो लेकिन, समाजवादी पार्टी इस पर राजी होगी, यह कहना मुश्लिक लगता है। लेकिन क्या ऐसा हो पायेगा ? यह बड़ा सवाल है। यह मामला केवल यूपी में ही नहीं फंसा बल्कि पूरे देश में ऐसी ही बातें सामने आ रही हैं। ममता बनर्जी ने वेस्ट बंगाल में कांग्रेस और लेफ्ट के लिए एक -एक सीट छोडने को कहा है। यानी कुल मिलाकर ममता बनर्जी वेस्ट बंगाल में अपने घटक दलों के लिए मात्र दो सीट छोड़ने पर राजी हुई है।
ऐसे में साफ़ है कि “इंडिया” गठबंधन में सीट शेयरिंग ऐसा मुद्दा है जिसे सुलझाना आसान नहीं होगा। क्योंकि गठबंधन में शामिल पार्टियों का भविष्य सीट ही तय करने वाली है। इसलिए सभी राजनीति दल अपने अपने राज्यों में किसी दूसरे दल की एंट्री से संकित भी हैं। यही बात अखिलेश यादव के मन में भी है। अखिलेश यादव नहीं चाहते हैं कि कांग्रेस दोबारा यूपी में मजबूत हो और अपना पैर जमाये।
बताया जा रहा है कि सीट बंटवारे के दौरा समाजवादी पार्टी उन सीटों पर दावा नहीं करेगी जिन पर उसके वोट के लाले पड़े है यह प्रत्याशी नहीं जीता है। कहा जा रहा है कि अमेठी और रायबरेली सीट पर पहले से अपने उम्मीदवार खड़ा नहीं करती आई है। इस बार भी वह ऐसा कर सकती है। बात दें कि पिछले लोकसभा चुनाव में अमेठी सीट से राहुल गांधी, बीजेपी की उम्मीदवार स्मृति ईरानी से हार गए थे। हालांकि, रायबरेली सीट पर सोनिया गांधी ने जीत दर्ज की थी। कहा जा रहा है कि अखिलेश यादव इन दोनों सीटों के अलावा, गाजियाबाद, नोएडा , बागपत, अलीगढ़, मथुरा, हाथरस, आगरा, पीलीभीत, धौरहरा, वाराणसी, बस्ती, सुल्तानपुर , लखनऊ और कानपुर जैसी सीटों पर दावा नहीं ठोंकेगी।
वहीं, इंडिया गठबंधन की हिस्सा सीपीआई ने राहुल गांधी के वायनाड सीट से चुनाव लड़ने पर नाराजगी जताई है। सीपीआई का कहना है की राहुल गांधी उत्तर भारत की सीट से चुनाव लङे। सीपीआई के इस रुख से कांग्रेस खासा खफा है। सीपीआई के नेता का कहना है कि अगर राहुल गांधी 2024 के लोकसभा चुनाव में वायनाड से चुनाव लड़ते है तो इसके कांग्रेस और राहुल गांधी की कमजोर कड़ी मानी जायेगी। गौरतलब है कि केरल में बीजेपी लड़ाई में नहीं है। सीपीआई और कांग्रेस ही आमने सामने रही हैं। लेकिन गठबंधन में आने के बाद से यहां का सीट शेयरिंग का मुद्दा फंसता नजर आ रहा है।
ऐसे में यह भी मुद्दा होगा कि कांग्रेस अमेठी और रायबरेली से किसे उतारेगी। क्योंकि प्रदेश के नए अध्यक्ष अजय राय का कहना है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी अमेठी से चुनाव लड़ेंगे। बहरहाल विपक्ष के गठबंधन को कई स्तर पर चुनैतियाँ हैं। इन चुनौतियों में से एक चुनौती सीट शेयरिंग भी है। इसे विपक्ष कैसे हल करता है। यह देखना बड़ा दिलचस्प होगा।
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