सरकार ने संसद की 24 स्थायी समितियों का गठन कर दिया है, जिसमें राजनीतिक दलों को उनके सदस्यों की संख्या के अनुपात में अध्यक्षता सौंपी गई है। भाजपा को सबसे अधिक 11 समितियों की कमान मिली है, जबकि कांग्रेस को चार, टीएमसी और डीएमके को दो-दो, समाजवादी पार्टी, जेडीयू, एनसीपी अजित पवार गुट, टीडीपी और शिवसेना शिंदे गुट को एक-एक समिति की अध्यक्षता मिली है।
कांग्रेस सांसद शशि थरूर विदेश मामलों की स्थायी समिति के अध्यक्ष बने रहेंगे। इसके अलावा राजीव प्रताप रूडी को जल संसाधन मंत्रालय से जुड़ी समिति का अध्यक्ष बनाया गया है। टीएमसी सांसद डोला सेन वाणिज्य समिति, भाजपा सांसद राधा मोहन दास अग्रवाल गृह मामलों की समिति के अध्यक्ष बने हैं। दिग्विजय सिंह महिला, बाल विकास, शिक्षा और युवा मामलों की समिति का नेतृत्व करेंगे, जबकि डीएमके सांसद टी शिवा उद्योग समिति, जेडीयू सांसद संजय कुमार झा परिवहन समिति, राम गोपाल यादव स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण समिति, निशिकांत दुबे संचार एवं आईटी समिति, राधा मोहन सिंह रक्षा समिति, भर्तृहरि महताब वित्त समिति, सी एम रमेश रेलवे समिति, कीर्ति आजाद रसायन एवं उर्वरक समिति और अनुराग सिंह ठाकुर कोयला, खनन और स्टील समिति के अध्यक्ष बनाए गए हैं। इसके अतिरिक्त बैजंयत पांडा को इनसॉल्वेंसी और बैंकक्रप्सी कोड सेलेक्ट कमेटी और भाजपा सांसद तेजस्वी सूर्या को जनविश्वास बिल पर सेलेक्ट कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया है।
संसदीय समितियों का कार्यकाल आमतौर पर एक साल का होता है, जो सितंबर-अक्टूबर में शुरू होता है। हालांकि कुछ सांसदों ने इसकी अवधि बढ़ाकर दो साल करने का अनुरोध किया है, ताकि समितियां विचार किए गए विषयों पर प्रभावी ढंग से कार्य कर सकें। सरकार इस विषय पर लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला और राज्यसभा सभापति सीपी राधाकृष्णन के साथ विचार-विमर्श के बाद निर्णय ले सकती है।
नई लोकसभा के गठन के तुरंत बाद विभिन्न दलों की परामर्श से समितियों का गठन होता है और प्रत्येक सदस्य अपनी संख्या के अनुपात में समितियों में शामिल होता है। इनमें आठ समितियों की अध्यक्षता राज्यसभा के सदस्यों के पास है, जबकि 16 समितियों का नेतृत्व लोकसभा सदस्य करते हैं। वित्तीय समितियों, तदर्थ समितियों और अन्य विशेष समितियों का गठन समय-समय पर विधेयकों और अन्य मुद्दों पर विचार के लिए किया जाता है।
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