2010 के बाद मैं एक बार मनमाड आया। उस वक्त वहां के लोगों ने मुझसे कहा था कि प्याज को लेकर केंद्र सरकार की सोच अलग है और प्याज के दाम गिर रहे हैं| मैंने कार्यक्रम समाप्त किया, ओज़ेर आया। विमान से दिल्ली गये, अधिकारियों की बैठक बुलाई| उस समय प्याज के दाम बढ़ने पर भाजपाइयों ने दंगा किया था। अगले दिन जब लोकसभा शुरू हुई तो भाजपा के लोग गले में प्याज की माला डालकर आए|उस वक्त स्पीकर उनसे नाराज हो गये| उन्होंने पूछा कि क्या हो रहा है| प्याज के दाम इतने बढ़ गए हैं कि इसे खाना मुश्किल हो गया है| राष्ट्रपति ने मुझसे पूछा कि सरकार की नीति क्या है? क्या प्याज की कीमतें कम की जा सकती हैं? मैंने उत्तर दिया कि प्याज उत्पादक छोटा किसान है। अगर उसे अच्छा पैसा मिल रहा है तो दंगा करने का कोई कारण नहीं है।’
यदि आप गेहूं, ज्वार, बाजरी, चावल, मसाला की कीमत निकाल दें और प्याज की कीमत निकाल दें, तो दैनिक भोजन में यह कितना है? यह प्रश्न पूछा| उस समय मैंने यह स्टैंड ले लिया था कि प्याज की माला नहीं तो निर्यात पर प्रतिबंध नहीं लगाऊंगा। वे कह रहे हैं कि प्याज महंगा हो गया है| खाना मुश्किल हो गया है कहते हैं| कौन कहता है प्याज खाओ? मत खाओ ऐसी ही एक चाल शरद पवार ने भी निकाली है| प्याज के निर्यात पर प्रतिबंध का फैसला किसानों के लिए विनाशकारी है। इसलिए शरद पवार ने कहा कि प्याज के निर्यात पर प्रतिबंध का फैसला वापस लिया जाना चाहिए| जब तक हम सड़कों पर नहीं उतरते, दिल्ली को पता नहीं चलता।
वर्तमान शासक किसानों के लिए सही नीतियां नहीं बना रहे हैं। 26 नवंबर को इसी जगह पर बारिश और ओलावृष्टि हुई थी| किसानों को नुकसान हुआ, अंगूर उत्पादकों का माल खराब हो गया। अतः किसान संकट में पड़ गया। फिर भी शरद पवार ने कहा है कि सरकार ने कोई मदद नहीं की है| यह सरकार किसानों के हित के बारे में नहीं सोच रही है। शरद पवार ने भी कहा है कि किसानों की अर्थव्यवस्था खतरे में है| यदि आज के शासक किसानों के मुद्दों को न्याय की दृष्टि से नहीं देख रहे हैं तो हमें सामुदायिक शक्ति दिखानी होगी। नासिक ऐसा कर सकता है क्योंकि नासिक ने इस देश में सामूहिक शक्ति के निर्माण के लिए एक अनूठा कार्यक्रम लागू किया है। अलग-अलग नेता पैदा करने वालों में नासिक का नाम भी लेना होगा| शरद जोशी नेता हैं| वह नासिक के संपर्क में रहे। सामुदायिक शक्ति जुटाकर सरकार को किसानों की ताकत दिखाई गई।
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