“क्या आप इस गणराज्य का हिस्सा नहीं हैं?”: सुप्रीम कोर्ट की DMK सरकार को फटकार

हर ज़िले में नवोदय विद्यालय के लिए ज़मीन आवंटन का निर्देश

“क्या आप इस गणराज्य का हिस्सा नहीं हैं?”: सुप्रीम कोर्ट की DMK सरकार को फटकार

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तमिलनाडु में जवाहर नवोदय विद्यालय (JNV) को लेकर लंबे समय से चले आ रहे विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ा रुख अपनाते हुए राज्य की DMK सरकार को फटकार लगाई है। सोमवार को शीर्ष अदालत ने अपने आठ साल पुराने अंतरिम आदेश में संशोधन करते हुए तमिलनाडु सरकार को निर्देश दिया कि वह प्रत्येक ज़िले में नवोदय विद्यालय स्थापित करने के लिए आवश्यक भूमि की पहचान करे। यह आदेश न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने दिया।

सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति नागरत्ना ने केंद्र की योजनाओं को ‘थोपे जाने’ संबंधी तमिलनाडु सरकार के तर्क पर कड़ी टिप्पणी की। उन्होंने राज्य को उसकी संवैधानिक स्थिति की याद दिलाते हुए पूछा, “क्या आप इस गणराज्य का हिस्सा नहीं हैं?” न्यायाधीश ने सरकार से कहा कि “इसे भाषा का मुद्दा न बनाए और ‘माय-स्टेट, माय-स्टेट’ वाला रवैया छोड़ दे।”पीठ ने जोर देते हुए कहा, “यह एक संघीय देश है। इस अवसर को मत गंवाइए। यह आपके छात्रों के लिए एक अवसर है।”

न्यायमूर्ति नागरत्ना ने केंद्र–राज्य संवाद पर बल देते हुए कहा, “एक संघीय चर्चा होनी चाहिए। आप एक कदम बढ़ाइए, वे भी एक कदम बढ़ाएंगे। वे दो कदम भी बढ़ा सकते हैं। आंध्र प्रदेश के विभाजन के बाद तमिलनाडु को सारी प्रतिष्ठा मिली है। यह दक्षिण भारत का सबसे बड़ा औद्योगिक राज्य है। हर चीज़ में आगे। इस अवसर को लपकिए। इसे थोपना मत समझिए, यह आपके छात्रों के लिए अवसर है। आप कह सकते हैं कि यह हमारी भाषा नीति है। वे इस पर विचार करेंगे। वे आपकी नीति को भी खारिज नहीं कर सकते। केंद्र सरकार के सचिवों के संज्ञान में अपने कदम और अपनी प्रक्रिया लाइए। कृपया सकारात्मक रवैया अपनाइए।”

तमिलनाडु की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता पी. विल्सन ने तर्क दिया कि यह योजना केंद्र द्वारा तमिलनाडु पर हिंदी थोपने की “पिछले दरवाज़े से की गई कोशिश” है। इस पर अदालत ने स्पष्ट किया कि यह प्रक्रिया केवल प्रारंभिक और खोजपरक है। पीठ ने कहा, “हम केवल एक अभ्यास कर रहे हैं। हम आपसे आज ही शिलान्यास करने को नहीं कह रहे हैं।”

न्यायमूर्ति नागरत्ना ने यह भी संकेत दिया कि राज्य चाहे तो शर्तें तय कर सकता है, जैसे तीन-भाषा सूत्र के बजाय दो-भाषा नीति लागू करना। उन्होंने कहा, “अगर आपकी कोई भाषा नीति है, तो आप बताइए, हम योजना में उसी अनुसार संशोधन करेंगे। लेकिन ग्रामीण छात्रों के लिए अवसर को मत दबाइए।”

पीठ ने अपने निर्देशों में स्पष्ट किया कि उसका दृष्टिकोण बच्चों के सर्वोत्तम हित में है। न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि अदालत की चिंता हिंदी से अधिक गरीब और ग्रामीण पृष्ठभूमि के बच्चों की शिक्षा को लेकर है। उन्होंने सवाल किया, “यह मानसिक अवरोध क्यों? अगर आर्थिक रूप से पिछड़े छात्रों को अवसर दिया जा रहा है, तो आप उसे क्यों रोक रहे हैं?”

विल्सन ने दलील दी कि नवोदय मॉडल के तहत राज्य को तीन वर्षों तक स्कूलों का रखरखाव करना होता है और हर ज़िले में 30 एकड़ ज़मीन देनी होती है। इस पर अदालत ने प्रतिप्रश्न किया, “केंद्र सरकार अगर शिक्षा में निवेश करना चाहती है तो इसमें क्या गलत है? वहां केवल मेधावी छात्रों का प्रवेश होता है। आप स्कूलों का विरोध क्यों करते हैं? शिक्षा समवर्ती सूची में है। यह मानकों को ऊंचा कर रहा है।”

विल्सन ने कहा, “मैं (राज्य) अपने स्कूल खुद बना सकता हूं। हमारा सकल नामांकन अनुपात सबसे ऊंचा है। कोई भी राज्य कभी हमारी बराबरी नहीं कर पाएगा। वे हर ज़िले में 30 एकड़ ज़मीन चाहते हैं। मुझे पैसा खर्च करना पड़ेगा। मैंने समग्र शिक्षा योजना पर 3,548 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। वे अब भी हमारे पैसे बकाया रखते हैं। यह राज्य के साथ व्यवहार करने का तरीका नहीं है।”

इसके बावजूद न्यायमूर्ति नागरत्ना ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा, “अगर वे केंद्रीय पाठ्यक्रम के तहत पढ़ना चाहते हैं तो आप बीच में नहीं आ सकते। आप उन्हें कैसे वंचित कर सकते हैं?” उन्होंने फिर पूछा, “क्या आप इस गणराज्य का हिस्सा नहीं हैं?” और जोर दिया कि “हम एक संघीय समाज में रहते हैं”, जहां केंद्र और राज्य के बीच संवाद अनिवार्य है। पीठ ने कहा, “हमने भाषा पर कुछ भी नहीं कहा है। ऐसा टकराव वाला रवैया नहीं हो सकता। यह छात्रों के हित में है।”

अदालत ने यह भी नोट किया कि देशभर में पहले ही 650 नवोदय विद्यालयों को मंजूरी दी जा चुकी है और केवल तमिलनाडु ने इसका विरोध किया। पीठ ने आदेश में कहा, “हम 11 दिसंबर 2017 को इस न्यायालय द्वारा दिए गए अंतरिम स्थगन आदेश में संशोधन करते हुए याचिकाकर्ता राज्य को निर्देश देते हैं कि वह प्रत्येक ज़िले में नवोदय विद्यालय स्थापित करने के लिए आवश्यक भूमि की पहचान करे। यह अभ्यास छह सप्ताह की अवधि में पूरा किया जाए और उसकी स्थिति रिपोर्ट इस न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत की जाए।”

ताज़ा आदेश के साथ, शीर्ष अदालत ने स्पष्ट संकेत दिया है कि शिक्षा के सवाल पर राजनीतिक या भाषाई टकराव से ऊपर उठकर छात्रों के हितों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।केंद्र के शिक्षा मंत्रालय और तमिलनाडु सरकार के प्रतिनिधियों से परामर्श का अनुरोध करते हुए अदालत ने मामले की अगली सुनवाई छह सप्ताह बाद तय की। पीठ ने यह भी कहा, “कृपया प्रेस या मीडिया के माध्यम से बात न करें। आमने-सामने बैठकर बात कीजिए। हर कोई बयान दे रहा है, लेकिन वास्तविक लोगों के बीच कोई बातचीत नहीं हो रही है।”

बता दें की, विवाद 2017 से चला आ रहा है, जब मद्रास हाई कोर्ट की मदुरै पीठ ने राज्य को नवोदय विद्यालयों के लिए अस्थायी व्यवस्था और भूमि उपलब्ध कराने का निर्देश दिया था। हाई कोर्ट ने तब माना था कि नवोदय विद्यालय तमिलनाडु तमिल लर्निंग एक्ट, 2006 का उल्लंघन नहीं करते। सुप्रीम कोर्ट ने भी यह स्पष्ट किया कि तमिल-भाषी क्षेत्रों में नवोदय विद्यालयों में तमिल को प्राथमिक और शिक्षण भाषा के रूप में अपनाया जाता है।

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