सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (22 सितंबर) को तमिलनाडु सरकार को कड़ी फटकार लगाई जब उसने पूर्व मुख्यमंत्री एम. करुणानिधि की प्रतिमा स्थापित करने की अनुमति मांगी। अदालत ने कहा कि जनता के पैसों का इस्तेमाल पूर्व नेताओं के महिमामंडन के लिए नहीं किया जा सकता। जस्टिस विक्रम नाथ और प्रशांत कुमार मिश्रा की दो-न्यायाधीशों की पीठ ने टिप्पणी करते हुए कहा, “यह अनुमति योग्य नहीं है। आप अपने पूर्व नेताओं के महिमामंडन के लिए सार्वजनिक धन का उपयोग क्यों कर रहे हैं?”
सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार से अपनी याचिका वापस लेने और उचित राहत के लिए मद्रास हाईकोर्ट जाने को कहा। दरअसल, तमिलनाडु सरकार ने तिरुनेलवेली जिले के मुख्य मार्ग स्थित वल्लियूर डेली वेजिटेबल मार्केट के सार्वजनिक प्रवेश द्वार के पास करुणानिधि की कांस्य प्रतिमा और नामपट्टिका लगाने की अनुमति मांगी थी।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि वह इस पर कोई राहत नहीं देगा और मद्रास हाईकोर्ट के पहले के आदेश को बरकरार रखा। हाईकोर्ट ने इससे पहले कहा था कि सार्वजनिक स्थानों पर प्रतिमाओं की स्थापना से अक्सर ट्रैफिक जाम और जनता को असुविधा होती है, इसलिए इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती। मद्रास हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि नागरिकों के संवैधानिक अधिकार सर्वोपरि हैं। अदालत ने यह भी रेखांकित किया था कि जब सुप्रीम कोर्ट पहले ही ऐसे आदेशों पर रोक लगा चुका है, तो राज्य सरकार अपने स्तर पर कोई अनुमति नहीं दे सकती।
यह मामला केवल एक प्रतिमा का नहीं है, बल्कि सार्वजनिक स्थानों और करदाताओं के धन के उपयोग को लेकर उठे बड़े सवालों से भी जुड़ा है। विपक्ष और नागरिक संगठनों का तर्क है कि सरकारें अक्सर स्मारकों और प्रतिमाओं पर भारी राशि खर्च करती हैं, जबकि वही पैसा बुनियादी सुविधाओं और कल्याणकारी योजनाओं पर लगाया जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट का यह रुख राजनीतिक नेताओं की प्रतिमाओं और स्मारकों पर होने वाले सरकारी खर्च को लेकर एक नए संदेश के रूप में देखा जा रहा है। यह फैसला आगे आने वाले समय में अन्य राज्यों की सरकारों के लिए भी मिसाल साबित हो सकता है।
यह भी पढ़ें:
ईडी की कार्रवाई: फेयरप्ले ऑनलाइन सट्टेबाजी मामले में 307.16 करोड़ की संपत्ति जब्त
स्कूटर चोर को पकडा…पहले खिलाया खाना, फिर पिलाई सिगरेट, वीडियो वायरल
अमेरिका में हनुमान प्रतिमा पर विवाद, ट्रंप पार्टी नेता के बयान से भड़की हिंदू भावनाएँ!



