बशर अल-असद की सत्ता से विदाई के बाद, सीरिया 15 से 20 सितंबर 2025 के बीच अपना पहला संसदीय चुनाव आयोजित करेगा। यह चुनाव अंतरिम राष्ट्रपति अहमद अल-शराआ के नेतृत्व में होंगे और देश में लोकतंत्र की पुनर्स्थापना की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माने जा रहे हैं।
पिछले वर्ष के दिसंबर में सीरिया में एक तेज़ रिबेल हमले के बाद बशर अल-असद का दो दशक पुराना शासन गिर गया। इसके बाद मार्च 2025 में एक अस्थायी संविधान को लागू किया गया, जिसने अंतरिम राष्ट्रपति अहमद अल-शराआ के तहत एक संक्रमणकालीन व्यवस्था की रूपरेखा तय की। इस संविधान के तहत एक पीपल्स कमेटी को अंतरिम संसद के रूप में काम सौंपा गया, जब तक स्थायी संविधान और पूर्ण आम चुनाव आयोजित नहीं हो जाते।
यह चुनाव सीरिया के लोकतांत्रिक भविष्य की नींव के रूप में देखा जा रहा है। यह असद शासन के बाद पहली बार होगा जब सीरियाई नागरिक स्वतंत्र रूप से अपना विधायिका चुनेंगे। हालांकि, यह प्रक्रिया स्वैदा प्रांत में जारी सांप्रदायिक हिंसा की पृष्ठभूमि में हो रही है, जिससे चुनाव की वैधता और समावेशिता पर सवाल उठ सकते हैं।
स्वैदा प्रांत में हालिया हिंसा में 1,100 से अधिक लोगों की मौत हुई है। यह झड़पें बेडौइन हथियारबंद गुटों और ड्रूज अल्पसंख्यक समुदाय के बीच हुईं, जिनमें सीरियाई सरकारी बलों पर एक पक्ष विशेष को समर्थन देने और अत्याचार करने के आरोप लगे हैं। इसके अलावा, इज़रायली हवाई हमले भी सीरियाई सेना पर लगातार जारी हैं, जिससे क्षेत्र में अस्थिरता और बढ़ गई है। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि क्या चुनाव स्वतंत्र, निष्पक्ष और शांतिपूर्ण ढंग से हो पाएंगे।
इन चुनावों से सीरिया को एक प्रतिनिधिक पीपल्स असेंबली मिलने की उम्मीद है, जो स्थायी संविधान के मसौदे पर काम कर सके और देश को राजनीतिक स्थिरता की ओर ले जाए। अगर ये प्रक्रिया सफल होती है, तो यह सीरिया के लोकतांत्रिक पुनर्निर्माण में मील का पत्थर साबित हो सकती है।
जहां एक ओर अंतरिम सरकार चुनाव की तैयारियों में जुटी है, वहीं अंतरराष्ट्रीय समुदाय की निगाहें भी इन चुनावों पर टिकी हुई हैं। यह देखना अहम होगा कि क्या युद्ध-ग्रस्त और बंटी हुई सीरियाई जनता एक बार फिर लोकतांत्रिक रूप से एकजुट हो पाएगी।



