ब्रिटेन में उस समय एक चौकाने वाली घटना हुई जब भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर के काफिले पर खालिस्तान समर्थकों ने हमले की कोशिश की। दरअसल, जयशंकर लंदन के चैथम हाउस में एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने पहुंचे थे। बाहर खालिस्तान समर्थक बड़ी संख्या में जुट गए।
बता दें कि जब जयशंकर बाहर निकले, उस दौरान उपद्रवियों ने उनके काफिले के सामने प्रदर्शन किया। इसी मौके पर प्रदर्शनकारियों के समूह में से एक व्यक्ति सुरक्षा घेरा तोड़ता हुआ जयशंकर की कार के पास पहुंच गया और उन्हें घेरने की कोशिश करने लगा। इतना ही नहीं खालिस्तान समर्थकों ने उनकी कार को भी रोकने की कोशिश की।
इस पूरी घटना को लेकर ब्रिटेन में भी आवाजें उठी हैं। कंजर्वेटिव पार्टी के सांसद बॉब ब्लैकमैन ने ब्रिटिश संसद के निचले सदन हाउस ऑफ कॉमन्स में इस मुद्दे को उठाया और घटना को खालिस्तानी गुंडों की ओर से किया हमला करार दिया। दूसरी तरफ भारत की तरफ से भी ब्रिटेन में खालिस्तानी चरमपंथ के बढ़ते प्रभाव को लेकर चिंता जाहिर की गई।
बता दें कि भारत ने घर की स्थिति ठीक करने के बाद विदेश में खालिस्तान समर्थन से जुड़े अभियानों पर नियंत्रण की कोशिश शुरू की। ब्रिटिश अखबार द डेलीमेल के मुताबिक, 2015 में भारत ने ब्रिटेन को एक डोजियर सौंपा था, जिसमें कहा गया था कि सिख युवाओं को ब्रिटेन के गुरुद्वारों में कट्टरपंथी बनाने की कोशिश की जा रही है। इसमें कहा गया था कि विचारधारा बदलने के साथ युवाओं को साधारण केमिकल्स से विस्फोटक बनाने की ट्रेनिंग भी दी जाती है।
इस पूरे घटनाक्रम के बाद यह जानना अहम है कि आखिर ब्रिटेन में खालिस्तान समर्थकों की जड़ें कितनी गहरी हैं? भारत और पाकिस्तान के क्षेत्र में फैला यह अलगाववादी एजेंडा ब्रिटेन तक पहुंचा कैसे? इसे वहां जोर-शोर से उठाने वाले शख्स और संगठन का क्या इतिहास है? इसके अलावा बीते दिनों में ब्रिटेन में खालिस्तान समर्थकों की किन हरकतों को लेकर भारत में चिंता बढ़ी है?
ब्रिटेन के 2021 तक की जनगणना के मुताबिक, वहां अभी करीब 5.25 लाख सिख बसे हैं। इस लिहाज से ब्रिटेन की जनसंख्या में सिखों का आंकड़ा करीब एक प्रतिशत है। यानी ब्रिटेन में सिख चौथा सबसे बड़ा धार्मिक समूह हैं।
ब्रिटेन में सिखों की मौजूदगी 19वीं सदी के मध्य से है, हालांकि तब इस धर्म के लोगों की आबादी दूसरे धर्मों के मुकाबले काफी कम थी। यह स्थिति दूसरे विश्व युद्ध के बाद से बदलना शुरू हुई, जब ब्रिटेन में कामगारों की कमी की वजह से बड़ी संख्या में सिख समुदाय को भारत से ब्रिटेन में बसने का मौका दिया गया। इतना ही नहीं 1947 में भारत और पाकिस्तान के बंटवारे का दंश झेलने वाले कई सिख परिवारों ने ब्रिटेन को अपना नया घर बनाने का फैसला किया।
वहीं, भारत ने घर की स्थिति ठीक करने के बाद विदेश में खालिस्तान समर्थन से जुड़े अभियानों पर नियंत्रण की कोशिश शुरू की। ब्रिटिश अखबार द डेलीमेल के मुताबिक, 2015 में भारत ने ब्रिटेन को एक डोजियर सौंपा था, जिसमें कहा गया था कि सिख युवाओं को ब्रिटेन के गुरुद्वारों में कट्टरपंथी बनाने की कोशिश की जा रही है। इसमें कहा गया था कि विचारधारा बदलने के साथ युवाओं को साधारण केमिकल्स से विस्फोटक बनाने की ट्रेनिंग भी दी जाती है।
हालिया दिनों में ब्रिटेन में खालिस्तान समर्थकों के उग्र प्रदर्शनों में बढ़ोतरी देखी गई है। खासकर चरमपंथी संगठन सिख फॉर जस्टिस (एसएफजे) की अलग खालिस्तान के लिए जनमत संग्रह से जुड़ी मांग के बाद। ब्रिटेन में इस रेफ्रेंडम को कराने की कई कोशिशें की गईं। हालांकि, वोटिंग के फर्जी दावों और प्रोपगैंडा के बीच इनमें 50 हजार लोगों के पहुंचने का दावा किया जाता है।
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