अमेरिका चीन चुनौती के बीच भारत को एआई साझेदार मानता!

दुनिया के एआई नियम तय किए जा सकें, चिप सप्लाई चेन सुरक्षित की जा सके और चीन के बढ़ते प्रभाव को रोका जा सके।

अमेरिका चीन चुनौती के बीच भारत को एआई साझेदार मानता!

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भारत की भूमिका इस हफ्ते तब खास तौर पर सामने आई जब अमेरिकी सांसदों और विशेषज्ञों ने चेतावनी दी कि एआई को लेकर दुनिया में तेज दौड़ चल रही है। चीन बहुत तेजी से अपनी सेना और उद्योगों में एआई अपना रहा है, जबकि अमेरिका और उसके साझेदार देश उन्नत चिप तकनीक पर अपनी बढ़त बनाए रखने के लिए नियंत्रण कड़े कर रहे हैं।

मंगलवार (2 दिसंबर) को अमेरिकी सीनेट की एक बैठक में विशेषज्ञों ने कहा कि आने वाला साल भारत जैसे लोकतांत्रिक देशों के बीच और गहरे तालमेल की मांग करेगा, ताकि दुनिया के एआई नियम तय किए जा सकें, चिप सप्लाई चेन सुरक्षित की जा सके और चीन के बढ़ते प्रभाव को रोका जा सके।

ईस्ट एशिया, पैसिफिक और इंटरनेशनल साइबर सिक्योरिटी पॉलिसी पर सीनेट की फॉरेन रिलेशंस सबकमेटी ने यह बैठक इसलिए बुलाई गई थी कि चीन की एआई तेजी का दुनिया पर क्या असर पड़ेगा, इसका आकलन किया जा सके। बातचीत में भारत जल्दी ही एक अहम देश के तौर पर सामने आया, जो भविष्य के एआई फ्रेमवर्क में बड़ी भूमिका निभा सकता है।

व्हाइट हाउस के पूर्व नेशनल सिक्योरिटी अधिकारी और अब एंथ्रोपिक से जुड़े तरुण छाबड़ा ने कहा कि भरोसेमंद एआई ढांचा बनाने के लिए भारत जैसे लोकतांत्रिक देशों से करीबी तालमेल बेहद जरूरी होगा। उन्होंने बताया कि जल्द ही भारत में एक बड़ा एआई सम्मेलन होने वाला है, जो ऐसे ढांचे के निर्माण का अच्छा अवसर होगा। यह सम्मेलन फरवरी 2026 में प्रस्तावित है।

छाबड़ा ने कहा कि एआई में नेतृत्व आने वाले वर्षों में किसी भी देश की अर्थव्यवस्था और सुरक्षा को गहराई से प्रभावित करेगा। उन्होंने आने वाले दो–तीन सालों को बेहद निर्णायक बताया। उन्होंने कहा कि चीन की सरकारी कंपनियों को अमेरिकी हार्डवेयर लेने से रोकने के लिए नियंत्रण और कड़े किए जाने चाहिए।

वहीं, सीनेटर पीट रिक्ट्स और क्रिस कून्स ने एआई की इस दौड़ को शीत युद्ध के जमाने की ‘स्पुतनिक प्रतियोगिता’ जैसा बताया। रिक्ट्स ने कहा कि इस बार मुकाबला चीन से है और दांव पर ज्यादा बड़ी चीजें हैं। उन्होंने कहा कि एआई आम जिंदगी और सेना दोनों को बदल देगा, और चीन सिविल व सैन्य एआई को एक साथ जोड़कर अगली तकनीकी क्रांति पर कब्जा करना चाहता है।

कून्स ने कहा कि एआई में अमेरिका और उसके साथियों की लीडरशिप यह पक्का करने के लिए ज़रूरी है कि दुनिया भर में इसे अपनाया जाए, यह “हमारे चिप्स, हमारे क्लाउड इंफ्रास्ट्रक्चर और हमारे मॉडल्स” पर निर्भर करता है। उन्होंने बताया कि चीन एआई रिसर्च और उसके इस्तेमाल पर भारी रकम लगा रहा है और 2030 तक दुनिया की एआई महाशक्ति बनने का लक्ष्य रखता है।

विशेषज्ञों ने चेताया कि चीन की सेना एआई को बहुत तेजी से अपने हर स्तर में जोड़ रही है। एईआई के क्रिस मिलर ने कहा कि रूस और यूक्रेन भी खुफिया जानकारी फिल्टर के लिए एआई का इस्तेमाल कर रहे हैं और यह तकनीक आने वाले समय में रक्षा योजना का अहम हिस्सा बन जाएगी।

भारत के लिए इस चर्चा में कई नई संभावनाएं भी उभरकर आई हैं। भारत और अमेरिका के बीच उभरती हुई तकनीकों पर सहयोग बढ़ रहा है। फरवरी 2026 में भारत में होने वाला एआई सम्मेलन इस बात का संकेत है कि दुनिया के एआई नियम, सुरक्षा मानक और सप्लाई चेन से जुड़े ढांचे के निर्माण में भारत की भूमिका अब और महत्वपूर्ण होती जा रही है।

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