जयशंकर ने यह बयान अमेरिकी प्रतिनिधि सभा की विदेश मामलों की समिति को बुधवार को होने वाली अहम सुनवाई से पहले दिया।
जयशंकर ने कहा कि अमेरिका-भारत संबंध, जो दोनों देशों में विभिन्न सरकारों के दौरान लगातार मजबूत होते गए, आज ‘राजनीतिक ठहराव’ की स्थिति में पहुंच गए हैं। इसके पीछे दो प्रमुख कारण बताए गए। पहला, व्यापार-टैरिफ को लेकर बढ़ते विवाद और दूसरा, अमेरिका द्वारा पाकिस्तान के सैन्य नेतृत्व से बढ़ती नजदीकियां।
उनके अनुसार, यह वही साझेदारी है जो 1998 से आर्थिक सहयोग, इंडो-पैसिफिक रणनीति और चीन की बढ़ती आक्रामकता के बीच मजबूत होती चली गई थी। उन्होंने कहा कि आज, जब दोनों देश चीन के बढ़ते प्रभाव और दुनिया भर में फैल रहे अस्थिर हालात का सामना कर रहे हैं, साझेदारी की रफ्तार थमना खतरनाक साबित हो सकता है।
अपने बयान में उन्होंने विस्तार से बताया कि किस तरह 1999 में प्रतिबंध हटने से लेकर 2008 के ऐतिहासिक सिविल न्यूक्लियर एग्रीमेंट, रक्षा सहयोग, इंटरऑपरेबिलिटी बढ़ाने, क्वाड की पुन: सक्रियता और स्पेस, क्रिटिकल मिनरल्स और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसे क्षेत्रों में बढ़ती साझेदारी ने दोनों देशों को करीब लाया है।
लेकिन, वही प्रगति आज बाधित होती दिख रही है। उन्होंने लिखा, “वर्तमान स्थिति राष्ट्रपति ट्रंप और प्रधानमंत्री मोदी द्वारा फरवरी 2025 में तय की गई महत्वाकांक्षी द्विपक्षीय एजेंडा को नुकसान पहुंचा सकती है, साथ ही क्वाड, मध्य पूर्व और वैश्विक मामलों में हो रहे रणनीतिक सहयोग को भी झटका लग सकता है।”
जयशंकर ने कहा कि चीन की सैन्य क्षमता अब अमेरिका की बराबरी में खड़ी है। उन्होंने चीन की सीमाओं पर घुसपैठ, 2020 के गलवान संघर्ष, इतिहास के सबसे बड़े नौसेना विस्तार और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में बनाए जा रहे डुअल-यूज पोर्ट्स का जिक्र किया।
भारत ने भी 2017 से समुद्री मोर्चे पर गश्त बढ़ाई है और क्वाड के समुद्री डोमेन जागरूकता कार्यक्रम सहित कई साझेदारों के साथ सहयोग मजबूत किया है।
उन्होंने कहा कि अप्रैल में भारत पर हुए आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान के खिलाफ भारत की जवाबी कार्रवाई को लेकर अमेरिका की प्रतिक्रिया और फिर पाकिस्तानी सैन्य नेतृत्व से उसकी बढ़ती बातचीत ने भारत-अमेरिका संबंधों को झटका दिया।
उन्होंने पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद को समर्थन देने के लंबे इतिहास की ओर इशारा करते हुए कहा कि यह भारत और पूरे क्षेत्र के लिए एक स्थायी सुरक्षा चुनौती बनी हुई है।
जयशंकर ने कहा कि द्विपक्षीय व्यापार समझौता पटरी से उतरने के बाद अमेरिका द्वारा लगाए गए टैरिफ अब दुनिया में किसी भी देश पर लगाए गए सबसे ऊंचे टैरिफ में से एक बन गए हैं। इससे दोनों देशों के निर्यातकों, निवेशकों और कर्मचारियों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।
उन्होंने चेतावनी दी कि अगर ये शुल्क लंबे समय तक बने रहे, तो भारत में इन्हें ‘राजनीतिक शत्रुता’ के रूप में देखा जाने लगेगा।
तनाव के बावजूद दोनों देश रक्षा, ऊर्जा और तकनीक में तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। इस साल कई महत्वपूर्ण उपलब्धियां दर्ज हुईं, जिनमें 10-वर्षीय डिफेंस फ्रेमवर्क एग्रीमेंट, बड़े रक्षा सौदे, विस्तारित सैन्य अभ्यास, नासा की मदद से मानव अंतरिक्ष मिशन, भारत-अमेरिका द्वारा विकसित निसार सैटेलाइट का लॉन्च और 1.3 अरब डॉलर के भारतीय एलएनजी आयात सौदे जैसे कई कदम शामिल हैं।
जयशंकर के अनुसार साझेदारी के चार मुख्य स्तंभ (व्यापार, ऊर्जा, तकनीक और रक्षा) अभी भी बेहद मजबूत हैं। उन्होंने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, क्रिटिकल मिनरल्स, सेमीकंडक्टर सप्लाई चेन और भारत-अमेरिका ट्रस्ट पहल के तहत रक्षा सह-उत्पादन में अपार संभावनाएं बताईं।
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