पश्चिम बंगाल में शिक्षक और गैर-शिक्षक के 25,753 पदों पर नियुक्तियों को रद्द करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ तृणमूल कांग्रेस ने बुधवार को कोलकाता में विरोध की हुंकार भरी। पार्टी ने इस फैसले को “राजनीतिक साजिश” करार देते हुए कॉलेज स्क्वायर से धर्मतला के एस्प्लेनेड तक विशाल रैली निकाली, जिसमें टीएमसी की छात्र और युवा शाखाओं ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।
टीएमसी नेताओं ने दावा किया कि यह सिर्फ कोलकाता तक सीमित नहीं रहेगा। 11 अप्रैल को राज्य के हर जिले, ब्लॉक, वार्ड और कस्बे में इसी तरह के प्रदर्शन आयोजित किए जाएंगे। पार्टी का कहना है कि यह विरोध सिर्फ एक अदालती फैसले के खिलाफ नहीं, बल्कि सीपीएम और भाजपा द्वारा रची गई साजिश के खिलाफ है, जिसके चलते हजारों युवाओं की नौकरियां छिन गईं।
टीएमसी के प्रदेश अध्यक्ष सुब्रत बख्शी ने विरोध रैली की घोषणा करते हुए कहा, “यह रैली छात्रों और युवाओं की आवाज़ है, जिनके भविष्य के साथ राजनीतिक चालों ने खिलवाड़ किया। भाजपा और माकपा ने मिलकर 25,753 युवाओं को बेरोजगार कर दिया। यह जनविरोध इसी अन्याय के विरुद्ध है।”
हालांकि, राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि तृणमूल कांग्रेस सीधे सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का विरोध करने से बच रही है, जिससे अदालती अवमानना का आरोप न लगे। इसलिए पार्टी ने अपना विरोध विपक्षी दलों के कथित षड्यंत्र पर केंद्रित रखा है।
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कलकत्ता हाईकोर्ट के उस फैसले को बरकरार रखा, जिसमें कहा गया था कि पश्चिम बंगाल स्कूल सेवा आयोग (WBSSC) द्वारा की गई नियुक्तियों में व्यापक भ्रष्टाचार हुआ है। कोर्ट ने यह भी कहा कि आयोग और राज्य सरकार योग्य उम्मीदवारों को अवैध रूप से नियुक्त ‘दागी’ लोगों से अलग करने में विफल रही।
2016 के इस बहुचर्चित शिक्षक भर्ती घोटाले में यह सामने आया था कि कई उम्मीदवारों ने परीक्षा में अच्छा प्रदर्शन नहीं किया था, फिर भी उन्होंने नौकरी हासिल कर ली। जांच में पाया गया कि इन उम्मीदवारों ने कथित रूप से बड़ी रकम देकर नियुक्ति प्राप्त की थी। कुछ मामलों में उम्मीदवारों के अंक पत्रों से छेड़छाड़ की गई, तो कहीं इंटरव्यू स्कोर में मनमानी तरीके से बढ़ोतरी की गई। कई ऐसे नाम सामने आए जो मेरिट लिस्ट में नहीं थे, लेकिन अंतिम नियुक्ति सूची में जगह बना गए। इससे न केवल ममता सरकार की प्रमाणिकता और पारदर्शिता पर सवाल उठे बल्कि हजारों योग्य अभ्यर्थियों का हक भी मारा गया।
इस फैसले के बाद जहां राज्य की राजनीतिक फिजा गर्म है, वहीं शिक्षा व्यवस्था से जुड़े हजारों परिवारों के सामने भविष्य की अनिश्चितता खड़ी हो गई है। अब देखना यह होगा कि टीएमसी के यह विरोध प्रदर्शन से अपनी खोई इज्जत और जनता का विश्वास जुटा पाती हैं या न्यायपालिका के फैसले के बाद जनता की आंखे खुलेंगी!
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