देश में कड़े UAPA कानून के तहत गिरफ्तारी के मामलों में लगातार वृद्धि दर्ज की गई है, जबकि दोषी पाने के बाद सजा दिए जाने का दर बेहद कम है। संसद के शीतकालीन सत्र में केंद्र सरकार द्वारा पेश किए गए आंकड़ों के अनुसार, 2019 से 2023 के बीच यूएपीए के तहत कुल 10,440 लोगों को UAPA के तहत गिरफ्तार किया गया, लेकिन इस अवधि में सिर्फ 335 दोषसिद्धियां हो सकीं, जो करीब 3 प्रतिशत ही हैं। 2023 में 2,914 गिरफ्तारियां हुईं, यह आंकड़ा 2019 की 1,948 गिरफ्तारियों की तुलना में लगभग 50 प्रतिशत अधिक हैं।
गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने लोकसभा में कांग्रेस सांसद शफी परम्बिल के सवाल के लिखित उत्तर में बताया कि NCRB द्वारा प्रकाशित 2023 के नवीनतम आंकड़ों में यह बढ़ोतरी साफ दिखती है। 2020 में गिरफ्तारी के मामलों में हल्की गिरावट दर्ज की गई थी, लेकिन इसके बाद 2021, 2022 और 2023 में लगातार उछाल आया और 2023 में यह संख्या अब तक के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई। 2019 में जहां 34 लोगों को दोषी ठहराया गया था, वहीं 2023 में दोषसिद्धियों की संख्या बढ़कर सिर्फ 118 पहुंची है, जिससे स्पष्ट होता है कि अधिकांश केस लंबी न्यायिक प्रक्रियाओं में अटके हुए हैं।

2023 में UAPA के तहत गिरफ्तारियों के मामले में उत्तर प्रदेश से 1,122 लोगों को पकड़ा गया है, जो काफी अधिक है, जिनमें से केवल 75 मामलों में दोषसिद्धि दर्ज हुई। हालांकि केंद्र शासित जम्मू-कश्मीर में 2023 में सबसे ज्यादा 1,206 गिरफ्तारियां हुईं, लेकिन इनमें से सिर्फ 10 मामलों में सजा हो पाई। असम (154), मणिपुर (130), मेघालय (71), पंजाब (50), बिहार (34) और झारखंड (29) भी सूची में शामिल रहे। जम्मू-कश्मीर में 2019 से 2023 तक हर वर्ष बड़ी संख्या में गिरफ्तारियां होती रहीं, जबकि दोषसिद्धि की संख्या बेहद कम रही।

UAPA देश का प्रमुख आतंकवाद-निरोधक कानून है, जिसे 1967 में अलगाववादी गतिविधियों पर लगाम लगाने के लिए लाया गया था। समय–समय पर इसमें संशोधन किए गए हैं, विशेष रूप से 2019 में, जब सरकार को व्यक्तियों को भी “आतंकी” घोषित करने का अधिकार मिल गया। इस कानून के तहत जांच एजेंसियों को विस्तृत अधिकार प्राप्त हैं, साथ ही लंबे समय तक हिरासत और एनआईए को बिना राज्य की अनुमति के जांच संभालने जैसी शक्तियां भी दी गई हैं।
UAPA कानून के आलोचकों के अनुसार, यूएपीए में आरोपी पर दोष साबित होने से पहले ही गंभीर पाबंदियां लग जाती हैं और जमानत मिलना लगभग असंभव हो जाता है। धारा 43D(5) के तहत अदालत यदि केस डायरी देखकर आरोप प्राथमिक दृष्टी से सही मान ले, तो आरोपी को जमानत नहीं दी जा सकती।
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