उत्तर प्रदेश निकाय चुनावों को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण पर निर्णय दे दिया है। जहां फैसला सुनाते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि ओबीसी आरक्षण के बगैर तत्काल स्थानीय निकाय चुनाव कराए जाएं। इस घोषणा के साथ ही अब ओबीसी के लिए आरक्षित सभी सीटें जनरल मानी जाएंगी। इसके साथ ही कोर्ट ने राज्य सरकार को ट्रिपल टेस्ट के लिए आयोग बनाए जाने का आदेश दिया। चुनाव की जारी होने वाली अधिसूचना में संवैधानिक प्रावधानों के तहत महिला आरक्षण शामिल होगा। कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि ट्रिपल टेस्ट संबंधी आयोग बनने पर ट्रांसजेंडर्स को पिछड़ा वर्ग में शामिल किए जाने के दावे पर गौर किया जाएगा। कोर्ट के इस 87 पेज के फैसले से राज्य सरकार को बड़ा झटका लगा है।
ट्रिपल टेस्ट फॉर्मूला के मुताबिक उत्तर प्रदेश को एक कमीशन का गठन करना होगा, जो अन्य पिछड़ा वर्ग की स्थिति पर अपनी रिपोर्ट देगा और उसके आधार पर ही उत्तर प्रदेश में ओबीसी के लिए आरक्षण लागू किया जा सकता है। आरक्षण देने के लिए 3 स्तर के मानक तय किए जाएंगे। इस ट्रिपल टेस्ट में देखा जाएगा कि राज्य में ओबीसी वर्ग की आर्थिक व शैक्षणिक स्थिति कैसी है और उन्हें आरक्षण की जरूरत है या नहीं।
इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच में जस्टिस डीके उपाध्याय और जस्टिस सौरभ लवानिया की बेंच ने निकाय चुनाव में आरक्षण से जुड़ी कुल 93 याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई शुरू की। इस दौरान सरकार की तरफ से कहा गया कि उत्तर प्रदेश में पिछडे वर्ग को लेकर 1993 में आयोग गठित किया गया था, और उसके आधार पर आरक्षण व्यवस्था लागू की गई है, जो सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर 50 फीसदी से ज्यादा नहीं है। कोर्ट ने चुनाव के संबंध में सरकार द्वारा जारी गत 5 दिसंबर के अनंतिम ड्राफ्ट आदेश को भी निरस्त कर दिया।
हाई कोर्ट के इस फैसले के बाद योगी सरकार दुविधा में आ गई, क्योंकि बीजेपी खुद को ओबीसी समाज का शुभचिंतक बताती है। इसके साथ ही निकाय चुनाव में जीत दर्ज करने के लिए बड़े वर्ग को अपने अधीन लेना चाहती है ताकि आने वाले लोकसभा चुनाव में भी जीत दर्ज की जा सके, लेकिन हाईकोर्ट के लखनऊ बेंच के फैसले ने यूपी बीजेपी के लिए मुश्किल खड़ा कर दिया है। यही वजह है कि प्रदेश सरकार ने हाई कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाने का रुख किया है। वहीं बीजेपी निकाय चुनाव कराने की जल्दबाजी में ओबीसी वोटरों को नाराज नहीं करना चाहती है, क्योंकि उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी भी ओबीसी वोटरों को लेकर ही राजनीति करती है और ओबीसी ही उसका वोट बैंक माना जाता है।
वहीं इस फैसले के बाद यूपी के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने कहा कि नगरीय निकाय चुनाव के संबंध में उच्च न्यायालय इलाहाबाद के आदेश का विस्तृत अध्ययन कर विधि विशेषज्ञों से परामर्श करने के बाद सरकार के स्तर पर अंतिम निर्णय लिया जाएगा, परंतु पिछड़े वर्ग के अधिकारों को लेकर कोई समझौता नहीं किया जाएगा। कोर्ट के निर्णय को लेकर सपा नेता रामगोपाल यादव ने सरकार पर कोर्ट में ठीक से पैरवी न करने के आरोप लगाए हैं। उन्होंने ट्वीट कर कहा कि निकाय चुनावों में ओबीसी का आरक्षण खतम करने का फ़ैसला दुर्भाग्यपूर्ण है। यह उत्तर प्रदेश सरकार की साजिश है। जानबूझकर तथ्य न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत नहीं किए गए। उन्होंने कहा कि ऐसा करके सरकार ने यूपी की 60 फीसदी आबादी को आरक्षण से वंचित किया।
नगर निकाय चुनाव कराने को लेकर हाईकोर्ट के फैसल आने के बाद आम आदमी पार्टी के प्रदेश प्रभारी और सांसद संजय सिंह ने सरकार पर जानबूझकर गलत आरक्षण करने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट के फैसले से स्पष्ट हो गया है कि भाजपा दलितों, पिछड़ों और शोषित वर्ग की विरोधी है। जबकि यदुकुल पुनर्जागरण मिशन के संयोजक विश्वात्मा ने कहा हाईकोर्ट का फैसला पिछड़े वर्गों के लिए अफसोस जनक है। साथ ही सपा विधायक शिवपाल सिंह यादव ने फैसले को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए कहा कि सामाजिक न्याय की लड़ाई को इतनी आसानी से कमजोर नहीं होने दिया जा सकता है। ऐसे में अगर बीजेपी निकाय चुनाव अभी कराती है तो जाहिर है इसका खामियाजा बीजेपी को ही निकाय चुनाव के साथ-साथ लोकसभा चुनाव में भी भुगतना पड़ सकता हैं। हालांकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि प्रदेश सरकार अन्य पिछड़ा वर्ग के नागरिकों को आरक्षण की सुविधा उपलब्ध कराएगी, उसके बाद ही चुनाव होगा।
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