धर्म पर विवादास्पद बयान देकर माफी के मोर्चे पर लौटे विजय वडेट्टीवार
जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए भीषण आतंकी हमले ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है, लेकिन इस हमले से उपजे राजनीतिक बयानबाज़ी के तूफान में कांग्रेस नेता विजय वडेट्टीवार खुद को घिरा हुआ पा रहे हैं। ‘धर्म पूछकर आतंकी नहीं मारते’ जैसे बयान के बाद तीखी आलोचनाओं का सामना कर रहे वडेट्टीवार अब सफाई और माफ़ी के रास्ते पर लौट आए हैं।
वडेट्टीवार ने मीडिया के सामने कहा, “मैंने कल जो कहा था, उसे तोड़ मरोड़कर पेश किया गया। मैंने कहा था कि आमतौर पर आतंकवादियों के पास हमला करने से पहले धर्म या जाति पूछने का समय नहीं होता, लेकिन पहली बार ऐसी घटना हुई है, जहां जान लेने से पहले धर्म पूछा गया।” उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि उनका आशय किसी की भावनाएं आहत करना नहीं था। “अगर मेरे शब्दों से किसी को ठेस पहुंची है या दर्द हुआ है या किसी की भावनाओं को ठेस पहुंची है, तो मैं इसके लिए माफी मांगता हूं,” वडेट्टीवार ने कहा।
उनका यह बयान उस पृष्ठभूमि में आया है जब पहलगाम हमले में मारे गए पर्यटकों के परिजनों ने दावा किया है कि आतंकियों ने धर्म पूछकर लोगों को गोली मारी। मृतकों के परिवारजनों ने बताया कि आतंकियों ने कलमा पढ़वाकर हिन्दू यात्रियों की पहचान की और फिर बेरहमी से गोलियों से भून डाला। इस आरोप ने देश में गुस्से की लहर पैदा कर दी और वडेट्टीवार का बयान उस गुस्से के ठीक विपरीत जा खड़ा हुआ।
सोमवार को वडेट्टीवार ने कहा था, “आतंकियों के पास इतना समय कहां होता है कि वह मारने वाले के कान में जाकर पूछे कि तुम हिंदू हो या फिर मुसलमान।” लेकिन अब वो कह रहे हैं कि उनके बयान को “इंटेलिजेंस फेलियर को छुपाने के लिए” जानबूझकर घुमाया गया।
सवाल यह नहीं है कि बयान को कैसे पेश किया गया, सवाल यह है कि ऐसे संवेदनशील वक्त में नेताओं को अपने शब्दों की धार का कितना अहसास है। वडेट्टीवार की माफी भले ही राजनीतिक दबाव का परिणाम हो, लेकिन इस प्रकरण ने साफ कर दिया है कि आतंकवाद जैसे मसलों पर बयानबाज़ी से पहले सौ बार सोचना चाहिए। सियासत के मंच से निकले शब्द कभी-कभी जख्मों पर नमक की तरह चुभते हैं—खासकर तब, जब देश मातम में डूबा हो।
क्या वडेट्टीवार की यह माफी जनता को संतोष दे पाएगी, यह तो वक्त बताएगा। फिलहाल, इतना तय है कि पहलगाम की त्रासदी केवल गोलियों से नहीं, शब्दों से भी घायल हुई है।



