एक ट्रांसवुमन टीचर ने कार्यस्थल पर भेदभाव का आरोप लगाया है। इसके खिलाफ इस शिक्षक ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है| टीचर ने कहा कि यह मेरे साथ अन्याय है कि गुजरात और उत्तर प्रदेश दोनों राज्यों के दो स्कूलों ने मुझे यह जानने के बाद निकाल दिया कि मैं एक ट्रांसवुमन हूं। इस मामले में दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है|
अदालत ने वास्तव में क्या कहा है?: न्यायमूर्ति जे.बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ के समक्ष इस याचिका की सुनवाई चल रही थी|अदालत ने दोनों पक्षों को दो सप्ताह के भीतर बहस पूरी करने को कहा था|
अदालत ने वसात में क्या कहा है?: न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ के समक्ष इस याचिका की सुनवाई चल रही थी|कोर्ट ने दोनों पक्षों को दो हफ्ते के भीतर बहस पूरी करने को कहा|भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश डी. वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने एक मामले में राज्य सरकारों और स्कूलों को नोटिस देने का निर्देश दिया था|
ट्रांसवुमन टीचर के आरोपों के बारे में क्या?: याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि मामला गंभीर है। यह इस बात का उदाहरण है कि कैसे एक ट्रांसजेंडर टीचर को उसकी पहचान के कारण खारिज कर दिया गया। स्कूल प्रशासन को पता था कि वहां कोई ट्रांसवुमन है| स्कूल प्रशासन को भी पता था कि वह महिला छात्रावास में रह रही है|
लेकिन जब यह बात सामने आई कि टीचर ट्रांसवुमन है तो स्कूल प्रशासन ने उसे नौकरी से निकाल दिया। यह सही नहीं है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश और गुजरात सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था|
Act 2019: सुप्रीम कोर्ट ने नेशनल लीगल सर्विसेज बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य मामले में ऐतिहासिक फैसला दिया| ट्रांसजेंडर महिलाओं या पुरुषों को नौकरियों और रोजगार में समान अवसर दिए जाने चाहिए। इस संबंध में कानून 2019 में तैयार किया गया था| यह भी निर्देशित किया गया कि लैंगिक भेदभाव के कारण किसी के साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता।
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