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Tuesday, September 17, 2024
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तुम मरो, हम राजनीति कर लें !

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पहले ही यह साफ हो जाय की कोरोना पर राजनीति हो रही है। आखिर मौका है छवि और राजनीति चमकाने का। यह लाख टके की बात है,लेकिन न कोई सुनने को तैयार है और न ही समझने को।जब कोरोना की दूसरी लहर आई तो अपने-अपने स्तर पर राज्यों ने काम करना शुरू किया। जब तक कोई कुछ समझता इससे पहले ही कोरोना की दूसरी लहर ने भारत को अपनी चपेट में ले चुका था।अब इसमें किसकी गलती है राज्य की या केंद्र की। सवाल अनुत्तर है।
पहले केंद्र की बात कर ली जाये, पीएम मोदी अपने हर संबोधन में यह बात कही है कि हर कोई कोरोना नियमों का पालन करते रहे। जब तक इसकी दवाई नहीं आ जाती। जनवरी की शुरुआत में कोरोना का टीका लगाना शुरू हुआ। प्राथमिकता के आधार पर टीका लगाना तय हुआ।  लोगबाग घर से बाहर निकलने लगे। लापरवाही से।
सरकार से लेकर आम लोग तक कोरोना से लापरवाह हो गए थे। कहीं कोई मास्क नहीं लगा रहा था, कहीं कोई सेट नाइजर का उपयोग नहीं कर रहा था। कुछ लोग का कहना था कि कंपनियों को लाभ पहुंचाने के लिए मास्क और सेटेनाइजर जरूरी कर दिया गया है। कोरोना अफवाह है।ट्रेनों का आवागमन बढ़ा, उसी तरह घरों में बंद राजनीतिक नेता भी बाहर आ गए और अपनी राजनीति चमकाने लगे। तब बात कोरोना के टीके की नहीं,आर्थिक मंदी, शेयर बाजार, देश गर्त में चला गया,यह राजनीतिक नेताओं की टीका टिप्पणी थी। बाकी सब ठीक है, बाद में राजनीति ने जोर पकड़ा और कोरोना एक बार फिर मातम ला दिया। दोष किसका? केंद्र भी लॉकडाउन लगाने के बाद लोगों को उबरने के लिए ढ़ील दी, लेकिन जनता को बीच -बीच में कोरोना के संक्रमण से अगाह करती रही। केंद्र सरकार को कोरोना के बारे में जानकारी थी कि वह पूरी तरह से गया नहीं है।
तब तक लोग रोजी -रोटी के जुगाड़ में निकल चुके थे और ट्रेनों को पूरी तरह से चलाने की मांग करने लगे थे,लेकिन सरकार इस पर कुछ नहीं बोलना चाहती थी, क्योंकि उसे पूरा यकीन था कोरोना की दूसरी वेब कभी आ सकती है। राज्यों ने ढील देना शुरू कर दिया था, रोजी-रोटी का हवाला देकर। तब तक सभी राज्य जानकर, ज्ञानवान हो चुके थे! फिर केंद्र को पूछता कौन है? जो लोग लॉकडाउन को लेकर सवाल उठा रहे थे ,वही दूसरी लहर लॉकडाउन लगाने की बात करने लगे। कहावत है ”जब अपने कोई समस्या आती है तो आंख खुलती है,” ऐसा ही हुआ। दूसरी लहर कहर बरसाना शुरू कर दिया था,राज्य अब अपनी ज्ञानी आँखों को खोलकर देखने लगे थे। दूसरी लहर में किसी भी राज्य ने कंटेनमेंट जोन पर काम नहीं किया। नहीं तो आज यह नौबत ही नहीं आई होती।
जब लोग मरने लगे तो राज्य टीका पर टूट पड़े। सभी कहने लगे मेरे पास अपार साधन है  हम कर लेंगे।  तो इसी ग्रुप को क्यों ? सभी को क्यों नहीं।केंद्र कहता रहा, चिल्लाता रहा  हाथ जोड़ता रहा, लेकिन कुछ राज्य के मंत्रियों ने अपनी पार्टी की छवि चमकाने में लग गए।सब कुछ वे खुद करना चाहते थे।हो-हल्ला हुआ।लेटरबाजी हुई। ऐसा किया गया कि सरकार बस कुछ ही ग्रुप को कोरोना का टीका देना चाहती है बाकी को नहीं।
केंद्र को सब पता था। केंद्र ने भी मान लिया की राज्य अब खुद को संभाल सकते हैं। इसलिए केंद्र ने भी सभी ग्रुप को टीकाकरण की अनुमति दे दी। सब खुश हुए। सबने सोचा इससे अच्छा राजनीति चमकाने का अवसर नहीं मिलेगा। लेकिन जब असलियत सामने आई तो सभी के होश उड़ गए।चारो तरफ लाशों के ढेर लग गए,ऑक्सीजन की किल्लत हो गई। वैक्सीन भी गायब हो गई। ये राज्य फिर दौड़े केंद्र के पास। अब आलोचना से राजनीति चमकाने लगे।पोस्टर लगाने लगे। जबकि इन्होने ही कहा सभी को टीका लगाओ। सभी फ्री छोड़ो।
फैक्ट- राज्यों के लगातार मांग पर केंद्र ने सभी वर्ग को टीका लगाने का ऐलान किया। इसमें कांग्रेस शासित राज्य और केजरीवाल शामिल हैं.अब सवाल यह है कि केंद्र क्या इन राज्यों के दबाव में यह निर्णय लिया।
जब 45 प्लस को वैक्सीन दी जा रही थी तो वैक्सीन की उपलब्धता पर्याप्त थी।अगर सरकार 18 प्लस को टीका का ऐलान नहीं किया होता तो वैक्सीन की कमी नहीं होती।
” सीरम इंस्टीट्यूट के कार्यकारी निदेशक सुरेश जाधव का  कहना कि सरकार ने बिना सोचे समझे 18 से 44 साल के लोगों के लिए वैक्सीनेशन की इजाजत दे दी, जबकि उसे पता था कि इनके लिए वैक्सीन उपलब्ध नहीं है। इस फैसले ने वैक्सीन का संकट खड़ा कर दिया, जिससे निकलना फिलहाल मुश्किल रहा है। सरकार ने ऐसा क्यों किया यह समझना भी मुश्किल है।”
तुम मरो, हम राजनीति कर लें 
छत्तीसगढ़ में 18 से 44 साल के बीच के कोरोना वैक्सीन लगवाने वाले लोगों को पीएम मोदी की जगह मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की तस्वीर वाली सर्टिफिकेट दी जा रही है। इस पर छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने कहा कि 18 से 44 वाले उम्र के लोगों को राज्य सरकार अपने खर्च पर वैक्सीन लगा रही है, इसलिए लोगों को पीएम मोदी के बदले मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की फोटो वाली वैक्सीनेशन सर्टिफिकेट दिए जा रहे हैं। उनका कहना है कि जब राज्य सरकार इस आयु वर्ग में टीकाकरण का खर्च वहन कर रही है तब वह प्रमाणपत्रों पर अपने मुख्यमंत्री की फोटो का उपयोग क्यों नहीं कर सकती है।

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