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2 अगस्त 1954, दादरा नगर हवेली मुक्तिसंग्राम, कैसे संघ ने भारत के इस हिस्से को दिलाई आजादी…

‘आज़ाद गोमांतक पार्टी’ ने दादरा नगर हवेली के मुक्तिसंग्राम का नेतृत्व तो किया  परन्तु सशस्त्र लढा करने की क्षमता उनमें नहीं थी। 2 अगस्त, 1954 को सिलवासा में ‘आज़ाद गोमांतक पार्टी’ ने कुछ अन्य संगठनों के साथ मिल कर तिरंगा झंडा फहराया।परंतु इनमें RSS के 200 प्रमुख सदस्य थे।

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आज हम आपको भारत के एक ऐसे क्षेत्र के बारे में बताने जा रहे हैं, जो पर्यटकों की पसंदीदा जगहों में से एक है। दादरा एवं नगर हवेली, जो केंद्रशासित प्रदेश ‘दादरा एवं नगर हवेली और दमन और दीव’ का हिस्सा है। ‘दादरा एवं नगर हवेली’  कभी स्वतंत्र केंद्र शासित प्रदेश हुआ करता था, लेकिन जनवरी 2020 में इसे और ‘दमन व दीव’ को जोड़ दिया गया।

मगर दादरा, नगर हवेली, दमन और दीव ये चारों के चारों स्वतंत्रता के पूर्व पुर्तगाल के कब्जे में हुआ करते थे। वही पुर्तगाल, जिससे गोवा को भी आज़ाद कराया गया था। भारत में व्यापार के लिए आए यूरोपीय प्रामुख्य से ब्रिटिश, फ्रेंच और पुर्तगीज ने यहाँ के विभिन्न इलाकों में अपना राज बना लिया था। पुर्तगाल इस इलाके पर तब तक शासन करता रहा जब तक उसके खिलाफ अगस्त 1954 में सशस्त्र विद्रोह न उठ खड़ा हुआ। 1954 से 1961 तक ये ‘स्वतंत्र दादरा एवं नगर हेवली का वरिष्ठ पंचायत’ के रूप में अस्तित्व में रहा।

मुक्तिसंग्राम में राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ की भुमिका:

दादरा नगर हवेली के मुक्ति के लिए आंदोलन करने वाले सेनानियों ने दादरा नगर हवेली के साथ भारत का हिस्सा बनना चाहा। पुर्तगाल इसके बावजूद भी इसे छोड़ने से इनकार कर रहा था और मुद्दे का अंतरराष्ट्रीयकरण करने में लग गया। इसी कारण भारतीय गणराज्य में औपचारिक रूप से इसका विलय होने में ज़्यादा समय लग गया।

जब गोवा में 1930 के दशक में स्वतंत्रता आंदोलन ने जोर पकडा तब दादरा एवं नगर हवेली में भी लोगों ने आज़ादी के लिए आवाज़ उठानी शुरू कर दी। नाना काजरेकर और महाराष्ट्र के प्रसिद्ध गीतकार सुधीर फड़के के नेतृत्व में संघ स्वयंसेवकों ने दादरा एवं नगर हवेली को आज़ाद कराया। महाराष्ट्र के जेष्ठ इतिहासकार बाबासाहेब पुरंदरे और स्वरसम्राज्ञी लता मंगेशकर भी इस मुक्तिसंग्राम का हिस्सा थे।  

उस समय दादरा नगर हवेली में पुर्तगाली पुलिस और अधिकारियों से भिड़ने के लिए शस्त्र अस्त्रों की आवश्यकता भी थी। गीतकार सुधीर फड़के ने इस मुक्तिसंग्राम के लिए लता मंगेशकर को गीतों के शो कर पैसे देने की मांग रखी। स्वरसम्राज्ञी लता मंगेशकर ने संपूर्ण स्वराज्य के लक्ष्य को समझते हुए तुंरत हामी भरी। दुर्भाग्य से लता मंगेशकर की गाडी का एक्सीडेंट हुआ जिस वजह से वो केवल एक ही शो कर पायी। सुधीर फड़के और अन्य जेष्ठ स्वयंसेवकों ने इन पैसों से गुप्तता रखते हुए हथियार इकट्ठे किये।

सबसे पहले तो दादरा एवं नगर हवेली के गाँवों में बैठकें शुरू हुईं। जनजातीय समूहों को विदेशी आक्रांताओं से मुक्ती पानी ही थी। राम मनोहर लोहिया और जयप्रकाश नारायण जैसे राजनेताओं ने बाहर से आंदोलनों को पूरा समर्थन व संरक्षण दिया। संघ ने जनजातीय समूह के नेताओं को भी इकट्ठा किया और आजादी की लड़ाई में उन्हें साथ लिया। इस समय भारत की केंद्र सरकार ने उदासीनता का धोरण अपनाया था। 

22 जुलाई, 1954 को ‘यूनाइटेड फ्रन्ट ऑफ गोअंस’ ने दादरा पुलिस थाने पर हमला किया। एक सब-इन्स्पेक्टर इस लड़ाई में मारा गया। इसके अगले ही दिन इसे आजाद घोषित कर दिया गया। 28 जुलाई को पुर्तगाल के पुलिसकर्मियों ने आत्म-समर्पण कर दिया। इसके बाद एक-एक कर सभी गाँव भारत के पक्ष में गोलबंद होते चले गए और 2 अगस्त को सिलवासा में भी तिरंगा लहराया। 

पुर्तगाल इस मामले को लेकर ‘अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ’ में चला गया। क्रांतिकारियों ने तब भारत से मदद माँगी और केंद्र सरकार ने IAS अधिकारी केजी बदलानी को वहाँ प्रशासक बना कर भेजा। ‘वरिष्ठ पंचायत’ पहले ही भारत में विलय को लेकर फैसला ले चुका था। उसने बदलानी को अपना प्रधानमंत्री चुना, जिसके बाद वो जवाहरलाल नेहरू के समकक्ष हो गए। फिर उन्होंने 11 अगस्त, 1961 को विलय के दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए।

‘आज़ाद गोमांतक पार्टी’ ने दादरा नगर हवेली के मुक्तिसंग्राम का नेतृत्व तो किया  परन्तु सशस्त्र लढा करने की क्षमता उनमें नहीं थी। 2 अगस्त, 1954 को सिलवासा में ‘आज़ाद गोमांतक पार्टी’ ने कुछ अन्य संगठनों के साथ मिल कर तिरंगा झंडा फहराया।परंतु इनमें RSS के 200 प्रमुख सदस्य थे। हालाँकि, इनमें से अब बहुत कम ही ऐसे हैं जो आज भी जीवित हैं। हर साल इनका संमेलन भी होता रहता है। सिर्फ दादरा एवं नगर हवेली, बल्कि गोवा की आज़ादी में भी संघ स्वयंसेवकों ने बड़ी भूमिका निभाई।

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