आचार्य चाणक्य ने संतोष को सबसे बड़ा सुख माना है। इस संसार में व्यक्ति कितना कुछ भी पा ले, लेकिन उसका मन कभी संतुष्ट नहीं होता। इसलिए सब कुछ होते हुए भी वो काफी व्याकुल रहता है। आचार्य का मानना था कि जिस व्यक्ति के पास संतुष्टि है, वो व्यक्ति संसार में सबसे ज्यादा सुखी है क्योंकि इंसान की कामना ही उसकी सबसे बड़ी शत्रु है। ऐसा व्यक्ति दूसरों के सुख को देखकर भी ईर्ष्या का भाव मन में रखा है और परेशान होता है। आचार्य शांति को सबसे बड़ा तप मानते थे। उनका मानना था कि कुछ लोगों के पास दुनिया की सभी सुख-सुविधाएं होती हैं, लेकिन फिर भी उनके पास शांति नहीं होती।
शांति तभी आती है, जब व्यक्ति अपने मन पर वश कर ले। संसार में जिस व्यक्ति ने शांति को ढूंढ लिया, समझिए उसका जीवन सफल हो गया। व्यक्ति का सबसे बड़ा शत्रु उसका लालच है। लालची व्यक्ति को कितना कुछ मिल जाए, लेकिन उसकी कामना कभी खत्म नहीं होती। वो दूसरों की भी चीजों पर बुरी नजर रखता है और उन्हें हड़पने की कोशिश करता है। ऐसे व्यक्ति के पास न संतुष्टि होती है और न ही शांति इसलिए संसार में सबसे बड़ा दुश्मन लालच है। जिसने लालच पर विजय प्राप्त कर ली, उसने आधी जंग जीत ली दूसरों के प्रति दया का भाव रखना सबसे बड़ा धर्म है।