आषाढ़ कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को पड़ने वाली कालाष्टमी व्रत को लेकर चल रहा असमंजस अब खत्म हो गया है। कई श्रद्धालु यह दुविधा महसूस कर रहे थे कि कालाष्टमी 18 जून को मनाई जाएगी या 19 जून को। लेकिन दृक पंचांग के अनुसार, कालाष्टमी 18 जून बुधवार को ही मनाई जाएगी।
पंचांग के अनुसार, अष्टमी तिथि 18 जून को दोपहर 1:33 बजे शुरू होकर 19 जून को सुबह 11:56 बजे तक रहेगी। चूंकि कालाष्टमी की पूजा रात्रि में प्रदोष काल के बाद की जाती है, इसलिए जिस दिन रात को अष्टमी प्रभावी होती है, उसी दिन व्रत करना शास्त्र सम्मत माना जाता है। यही कारण है कि कालाष्टमी 18 जून को ही रखी जाएगी।
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, जब अष्टमी तिथि रात्रि को प्रबल होती है और प्रदोष काल के बाद कम से कम एक घटी तक रहती है, तो उसी दिन कालाष्टमी व्रत करना उचित होता है। इस बार यही योग 18 जून को बन रहा है।
18 जून को एक खास संयोग बन रहा है — बुधवार के दिन, कालाष्टमी और मासिक कृष्ण जन्माष्टमी दोनों एक साथ पड़ रहे हैं। यह दिन साधना और व्रत के लिए अत्यंत शुभ माना जा रहा है। हालांकि बुधवार को कोई अभिजीत मुहूर्त नहीं है, लेकिन इस दिन राहुकाल 12:22 PM से 2:07 PM तक रहेगा।
कालाष्टमी भगवान काल भैरव को समर्पित होती है। इस दिन उनकी पूजा करने से भय, बाधाएं, शत्रु पीड़ा और नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति मिलती है। रात्रि में भैरव चालीसा, कालभैरव स्तोत्र या “ॐ कालभैरवाय नमः” मंत्र का जाप करने से विशेष पुण्य फल की प्राप्ति होती है।
श्रद्धालु इस दिन भगवान काल भैरव को उड़द दाल, काले तिल, और मिठाई का भोग लगाते हैं। साथ ही, काले कुत्ते को भोजन कराना भी अत्यंत शुभ माना जाता है, क्योंकि कुत्ता काल भैरव का वाहन है।
अगर कोई श्रद्धालु बुद्ध ग्रह की कृपा और मानसिक शांति की कामना करता है, तो बुधवार व्रत भी रखा जा सकता है। यह व्रत किसी माह के शुक्ल पक्ष के बुधवार से शुरू कर 7, 11 या 21 बुधवार तक किया जाता है। इस दिन भगवान गणेश की विशेष पूजा की जाती है। हरी मूंग, दूर्वा, बेसन के लड्डू या पंजीरी का भोग अर्पित कर “ॐ गं गणपतये नमः” अथवा “ॐ ब्रां ब्रीं ब्रौं सः बुधाय नमः” मंत्र का जाप शुभ माना गया है।
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