रामनवमी का पावन पर्व आज पूरे देश में आस्था, उल्लास और परंपरा के संगम के रूप में धूमधाम से मनाया जा रहा है। अयोध्या से लेकर शिरडी और हावड़ा तक श्रद्धा की बयार बह रही है, मंदिरों में घंटियां गूंज रही हैं और शोभायात्राओं में भक्तों का जनसैलाब उमड़ रहा है।
शिरडी में तीन दिवसीय रामनवमी उत्सव अपने चरम पर है, जहां भक्ति और आध्यात्मिक ऊर्जा के बीच भव्य जुलूस निकाला जाता है। इस जुलूस में साईं बाबा की तस्वीर, पवित्र पोथी और वीणा को विशेष रूप से शामिल किया गया है। शिरडी संस्थान की अध्यक्ष एवं प्रधान जिला न्यायाधीश अंजू शेंडे (सोनटक्के), मुख्य कार्यकारी अधिकारी गोरक्ष गाडीलकर, उप सीईओ भिमराज दराडे और प्रशासकीय अधिकारी रामदास कोकणे इस धार्मिक शोभायात्रा में भाग लेते हैं। साईं मंदिर के द्वार आज रातभर दर्शन के लिए खुले रहते हैं। श्रद्धालु कहते हैं, “साईं बाबा और प्रभु श्रीराम दोनों के दर्शन से आत्मा को शांति मिलती है।”
अयोध्या में राम जन्मभूमि परिसर भक्ति से सराबोर है। रामलला के जन्मोत्सव के अवसर पर विशेष श्रृंगार आरती, यज्ञ और पूजन का आयोजन जारी है। सिद्ध पीठ हनुमानगढ़ी और भव्य राम मंदिर परिसर में श्रद्धालुओं की लंबी कतारें लगी हैं। पंडित विट्ठल महाराज बताते हैं कि रामचरितमानस और वाल्मीकि रामायण का पाठ चल रहा है, और भगवान को 56 भोग अर्पित किए जा रहे हैं। संकीर्तन और भजन से अयोध्या की हर गली भक्तिरस में डूबी हुई है।
हावड़ा में भी रामनवमी पर उत्साह चरम पर है। श्यामश्री मोड़ से राम मंदिर तक निकाली जा रही शोभायात्रा में बड़ी संख्या में श्रद्धालु भाग ले रहे हैं। इसका नेतृत्व शिव शंकर साधु खान करते हैं, जबकि भाजपा नेता सजल घोष भी उपस्थित हैं। शोभायात्रा में हथियारों के प्रदर्शन को लेकर पूछे गए सवालों पर घोष जवाब देते हैं, “अगर हथियार ले जाना गुनाह है, तो यह नियम केवल रामनवमी पर क्यों दिखता है?” साथ ही वह आरोप लगाते हैं, “हावड़ा को दीदी ने संवेदनशील बनाया है, मुसलमानों ने नहीं।”
रामनवमी चैत्र मास की नवमी तिथि को मनाया जाता है और यह नवरात्रि के समापन का प्रतीक भी है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इसी दिन भगवान विष्णु राम के रूप में अवतरित होते हैं ताकि धरती पर धर्म की स्थापना हो सके। देशभर के मंदिरों में विशेष पूजा, हवन, रामायण पाठ और भजन-कीर्तन की ध्वनि गूंज रही है।
यह पर्व न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि सामाजिक समरसता, संस्कृति और भारतीय परंपरा की जीवंत अभिव्यक्ति भी बन चुका है।
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