महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे 9 अप्रैल को अयोध्या पहुंचेंगे और रामलला के दर्शन करेंगे। शिंदे अपने 3,000 शिवसैनिकों के साथ अयोध्या जाएंगे। महाराष्ट्र में सत्ता हस्तांतरण के घटनाक्रम के बाद मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे पहली बार अयोध्या आएंगे। शिवसैनिक 8 अप्रैल से अयोध्या में होंगे। शिंदे के स्वागत में 7 और 8 अप्रैल को लखनऊ से लेकर अयोध्या तक करीब 1500 बैनर और पोस्टर लगाए जाने की तैयारी है। शिवसेना के कार्यकर्ता बड़ी संख्या में बैनर और पोस्टर लगाने की तैयारी कर रहे हैं।
अयोध्या में लखनऊ-अयोध्या मार्ग पर सीएम एकनाथ शिंदे की अयोध्या यात्रा से संबंधित पोस्टर और बैनर लगे हुए हैं। इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, शिवसेना प्रमुख बालासाहेब ठाकरे, धर्मवीर आनंद दिघे, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के चित्र हैं। इनके साथ मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे का बड़ा फोटो लगा है। इस तरह इन पोस्टरों और बैनरों से माहौल भगवामय हो गया है। पोस्टरों में लिखा है- ‘श्रीराम के सम्मान के लिए, हिंदुत्व का धनुषबाण लिए चलो अयोध्या’ आज एकनाथ शिंदे की शिवसेना कीओर से सीएम की अयोध्या यात्रा को लेकर एक नया टीजर भी जारी किया गया।
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री द्वारा तैयार कार्यक्रम में रामलला, हनुमान गढ़ी दर्शन पूजन, राम मंदिर के निर्माण स्थल का निरीक्षण, आरती और लक्ष्मण किला मंदिर में संतों का आशीर्वाद लेना शामिल है। सीएम एकनाथ शिंदे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात करेंगे और उनसे अलग-अलग मुद्दों पर चर्चा करेंगे। सीएम शिंदे 9 अप्रैल की शाम को सरयू आरती में शामिल होने के बाद मुंबई वापस लौट जाएगे।
लखनऊ के अमौसी एयरपोर्ट पर मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे का स्वागत किया जाएगा। इसके बाद 100 गाड़ियों के काफिले के साथ उनको अयोध्या लाया जाएगा। सुरक्षा और अन्य व्यवस्था के लिए जिला प्रशासन को सूचना दे दी गई है। अयोध्या और फैजाबाद के छोटे-बड़े लगभग सभी होटल 8 और 9 अप्रैल के लिए बुक कर लिए गए हैं। इनमें महाराष्ट्र से आने वाले शिवसैनिकों को ठहराया जाएगा। मुख्यमंत्री के काफिले और महाराष्ट्र के शिवसैनिकों के अलावा, उत्तर प्रदेश के विभिन्न हिस्सों से लगभग 10 हजार शिवसेना कार्यकर्ता भी अयोध्या में एकत्रित होंगे।
महाराष्ट्र में इस समय जिस तरह से वीर विनायक दामोदर सावरकर के नाम पर शिवसेना-बीजेपी गठबंधन उद्धव ठाकरे के गुट को घेरने की कोशिश कर रही है, उस हिसाब से सीएम शिंदे का यह ऐलान प्रदेश की राजनीति के लिहाज से बहुत अहम है। क्योंकि, अयोध्या और रामलला बाल ठाकरे के जमाने से शिवसेना की राजनीति के लिए महत्वपूर्ण रहे हैं। खासकर मुख्यमंत्री ने जिस तरह से अपनी पार्टी के चुनाव चिन्ह को भगवान राम के धनुष-बाण के साथ जोड़ा है, वह प्रदेश की सियासत को और दिलचस्प बना रहा है।
दौरे को लेकर मुख्यमंत्री शिंदे ने कहा कि ‘9 अप्रैल को मैं अपनी पार्टी के मंत्रियों, विधायकों, सांसदों और अन्य पदाधिकारियों के साथ अयोध्या की यात्रा पर जाऊंगा। मुख्यमंत्री ने आगे कहा कि ‘जब कार सेवा चल रही थी, तब मेरे गुरु दिवंगत आनंद दिघे ने अयोध्या में चांदी की ईंटें भेजी थीं। हम लोगों का अयोध्या और भगवान राम के साथ एक पुराना नाता है।’
गौरतलब है कि बीजेपी के साथ नाता टूटने और एनडीए से अलग होने के बावजूद उद्धव ठाकरे और उनकी टीम ने अयोध्या मसले को हमेशा अपनी राजनीति के लिए अहमियत देने की कोशिश की है। क्योंकि, यह मसला शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे के लिए भी महत्वपूर्ण था। अब मुख्यमंत्री शिंदे अपनी पार्टी के चुनाव निशान को भगवान राम के धनुष बाण से जोड़कर महाराष्ट्र की बदलती राजनीति को बड़ा संकेत देने की कोशिश कर रहे हैं। खास बात ये है कि इससे पहले जब उद्धव ठाकरे के बेटे 15 जून, 2022 को अयोध्या में दर्शन के लिए पहुंचे थे, तो शिंदे भी उनके साथ थे। उसके चंद रोज बाद ही शिंदे ने उद्धव के नेतृत्व के खिलाफ बगावत कर दी थी और 15 दिन बाद ही वे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बन गए थे।
शिंदे की यात्रा अयोध्या के संतों के निमंत्रण पर हो रही है और महाराष्ट्र सरकार द्वारा मंदिर निर्माण के लिए चंद्रपुर जिले से बेशकीमती सागौन की पहली खेप भेजे जाने के एक सप्ताह बाद हो रही है। यह महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री द्वारा आगामी राम मंदिर की दूसरी यात्रा होगी। मार्च 2020 में तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने वहां प्रार्थना की थी और अब वर्तमान शिंदे वहां आरती करेंगे। शिंदे अपने मंत्रिमंडल में मंत्री के रूप में ठाकरे के साथ गए थे।
अयोध्या दौरे को लेकर एक घटना तब घटी जब मई 2022 में मनसे प्रमुख राज ठाकरे के अयोध्या दौरे को लेकर बीजेपी एमपी बृजभूषण शरण सिंह ने उनके विरोध में मुहिम चलाई थी। बृजभूषण शरण सिंह का विरोध राज ठाकरे के उस बयान को लेकर था। जिसमें राज ठाकरे ने यूपी, बिहार ,मध्य प्रदेश आदि प्रातों के मुंबई में रह रहे लोगों को बाहर करने की चेतावनी दी थी। बृजभूषण सिंह का कहना था कि जबतक राज ठाकरे अपने बयान के लिए यूपी की जनता से माफी नहीं मांगते, उनका विरोध जारी रहेगा। और राज ठाकरे को 5 जून को अयोध्या में प्रवेश नहीं करने देंगे। जिसके बाद मनसे प्रमुख के अयोध्या दौरे को लेकर काफी विवाद भी हुआ। हालांकि विवादों को देखते हुए यह दौरा स्थगित कर दिया गया था।
हालांकि अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण की लड़ाई वर्षों पुरानी हैं। अयोध्या में रामजन्मभूमि आंदोलन के शुरू होते ही देश की सियासत में भाजपा का एक नया रूप सामने उभरा था। सियासत में हिंदुत्व का तानाबाना बुनकर भाजपा ने लोगों के बीच पैठ इसी आंदोलन के द्वारा बनाई। इस आंदोलन को बड़े स्तर पर पहुंचाने में न केवल भाजपा के नेताओं का योगदान रहा बल्कि विश्व हिंदू परिषद, शिवसेना के बड़े नेता शामिल थे, जिन्होंने अपना पूरा जीवन इस मुहिम पर न्यौछावर कर दिया। इनमें भाजपा के लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, कल्याण सिंह, विनय कटियार के अलावा शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे, विश्व हिन्दू परिषद के अशोक सिंघल का नाम प्रमुख हैं।
शिवसेना प्रमुख रहे बालासाहेब ठाकरे अपने तेज तर्रार और विवादित भाषणों की वजह से देश भर में सुर्खियों में रहते थे। शिवसेना के बालासाहेब ठाकरे ही थे जिन्होंने छह दिसंबर 1992 को जब विवादित ढांचा गिराया तो बड़े गर्व से अयोध्या में शिव सैनिकों की मौजूदगी की बात स्वीकार की थी। उन्होंने कहा कि यह हमारे लिए गर्व की बात है। इसमें कोई शर्म की बात नहीं है। बाबरी मस्जिद के नीचे जो हमारा मंदिर था उसे हमने ऊपर लाया। बाल ठाकरे ने कहा था कि सच ये था कि मुसलमानों ने हमारी मंदिरों को तोड़ कर मस्जिद बना लिया था। अब हम आजाद हो चुके हैं तो हमारा कर्तव्य है कि हम उन जगहों पर हम मंदिर खड़े कर दें। हम चाहते हैं कि इस कार्य में मुसलमान भी हमारे साथ आ जाएं।
अपने बयानों में वह अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की बात करना नहीं भूलते थे। बाला साहेब ठाकरे के समर्थक उन्हें हिंदू हृदय सम्राट कहते थे। इस आंदोलन में जो कारसेवक की इतनी बड़ी संख्या शामिल हुई उसमें बाला साहेब ठाकरे की महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वालों में से एक थे। उनके प्रभावित करने वालों भाषणों से प्रभावित होकर इस आंदोलन से लोग जुड़े। 1992 में श्री राम जन्मभूमि आंदोलन के समय यह बालासाहेब के उत्साह और समर्पण का ही नतीजा था कि शिवसेना के तमाम लोगों ने इस आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था और खुद बालासाहेब ने गर्व से मुंबई से हजारों शिव सैनिकों को अयोध्या भेजा था। वहीं पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने राम मंदिर निर्माण के लिए 1 करोड़ रुपए दान किया था।
एकनाथ शिंदे की विचारधारा बालासाहेब ठाकरे से मिलती जुलती है वजह है कि शिंदे अपने शिवसैनिकों के साथ ही दौरे की योजना बनाते है। उद्धव ठाकरे में इस तरह की विचारधारा की कमी थी। उद्धव ठाकरे भी अयोध्या दौरे पर गए थे लेकिन शायद वह सच्चे मन से अयोध्या नहीं गए तभी तो उनकी कुर्सी छिन गई। एकनाथ शिंदे की विचारधारा हिन्दुत्ववाद से परिचित है। एक समय ऐसा आया जब एकनाथ शिंदे को अयोध्या जाने से रोका गया था, पर आज समय का चक्र देखिए सीएम एकनाथ शिंदे आज अपने विधायकों और शिवसैनिकों के साथ रामलला के दर्शन के लिए आयोध्या जा रहे है। पिछले महीने से राजनीतिक गलियारों में शिंदे के दौरे की चर्चा हो रही थी। जून में बगावत होने के बाद शिवसेना उद्धव ठाकरे गुट और शिंदे गुट में बंट गयी। दोनों ही अपने आपको सच्चा हिंदुत्ववादी साबित करने में जुटे हुए हैं। एकनाथ शिंदे ने ठाकरे से अलग होने के जो कारण गिनाएं उनमें से एक प्रमुख कारण ये बताया कि ठाकरे हिंदुत्व से विमुख हो गए हैं। वहीं अब अयोध्या जाकर शिंदे ये संदेश देना चाहते हैं कि उनका गुट ही असली हिंदुत्ववादी शिवसेना है।
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