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Sunday, November 24, 2024
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आखिर गया में क्यों किया जाता है बालू से पिंडदान, जानिए वजह

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कल से पितृपक्ष की शुरुआत हो गई है। जो 6 अक्टूबर तक रहेगा। इस दौरान हिन्दू धर्म में लोग अपने पितरों को खुश कर आशीर्वाद लेते हैं। माना जाता है कि श्राद्ध के दौरान परलोक गए पूर्वजों को पृथ्वी पर अपने परिवार के लोगों से मिलने आते हैं। इस दौरान लोग अन्न ,जल आदि  अर्पण करते हैं।  कई स्थानों पर चावल और बालू से पिंडदान किया जाता है  कई लोगों के मन सवाल उठाते है की आखिर बालू से पिंडदान क्यों ?
बालू से पिंडदान क्यों किया जाता है इसके बारे में लोगों के मन में सवाल होते हैं। बालू से पिंडदान का उल्लेक वाल्मिकी रामायण में मिलता है। रामायण के अनुसार वनवास के दौरान भगवान श्रीराम, लक्ष्‍मण और माता सीता के साथ पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध करने के लिए गया धाम पहुंचे। श्राद्ध के लिए कुछ सामग्री लेने के लिए नगर की ओर गए। उसी दौरान आकाशवाणी हुई कि पिंडदान का समय निकला जा रहा है। इसी के साथ माता सीता को दशरथजी महाराज की आत्‍मा के दर्शन हुए, जो उनसे पिंडदान के लिए कह रही थी।
माता सीता ने पिंडदान की तैयारी की. लेकिन कुछ नहीं होने की वजह से उन्होंने बालू का पिंडदान किया। माता सीता ने फल्‍गू नदी, वटवृक्ष, केतकी के फूल और गाय को साक्षी मानकर बालू का पिंड बनाकर फल्‍गू नदी के किनारे श्री दशरथजी महाराज का पिंडदान कर दिया। इससे उनकी आत्‍मा प्रसन्‍न होकर सीताजी को आर्शीवाद देकर चली गई।  मान्‍यता है क‍ि तब से ही गया में बालू से प‍िंडदान करने की परंपरा की शुरुआत हुई। बालू के पिंडदान करने से पितरों की आत्मा शांत होती है।
न करें यह सेवन: वहीं,  पितृ पक्ष में आपको भूल से भी लहसून और प्याज का सेवन नहीं करना है। तथा पितृ पक्ष के दौरान आपको अंडा, मांस और मदिरा का सेवन भी नहीं करना चाहिए। ये चीजें तामसिक भोजन के अंतर्गत आतीं हैं और इन चीजों का प्रयोग भोजन में आपको बिलकुल भी नहीं करना चाहिए। पितृ पक्ष में आप प्रतिदिन पूजा का संकल्प करें और पितृों का आवाहन करने के बाद ही पूजा आरंभ करें।पितृ पक्ष में प्रतिदिन सुबह उठते ही स्नान आदि करना है और उसके बाद सूर्यदेव को अर्घ्य दें। सूर्यदेव को अर्घ्य देते समय आप एक दीपक भी सूर्यदेव के नाम से जला सकते हैं। एक लोटे में काले तिल और गंगाजल, एक चम्मच दूध, पानी, फूल, और साथ ही अक्षत डालकर सूर्य मंत्र बोलकर आप सूर्यदेव को अर्घ्य दें। इसके बाद अपने इष्टदेव का पूजा करना चाहिए और पीपल के वृक्ष के नीचे जाकर पितरों के नाम से तर्पण करें।

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