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मुस्लिम समुदाय में महिला खतना प्रथा पर प्रतिबंध की याचिका, केंद्र को नोटिस जारी

सरकार ने कोर्ट को बताया था कि भारतीय दंड संहिता और अन्य कानूनों के तहत इस तरह के कृत्य पर 7 साल तक की सज़ा का प्रावधान है।

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मुस्लिम समुदाय, विशेषकर दाऊदी बोहरा समाज में प्रचलित महिला खतना (Female Genital Mutilation – FGM) की प्रथा पर रोक लगाने की मांग को लेकर दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से जवाब मांगा है। न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने शुक्रवार (28 नवंबर)को इस याचिका पर विचार करते हुए केंद्र और अन्य संबंधित पक्षों को नोटिस जारी कर दिया।

सुनवाई ‘चेतना वेलफेयर सोसाइटी’ की याचिका पर हो रही थी। याचिका में कहा गया है कि महिला खतना की प्रथा इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है और यह नाबालिग लड़कियों के अधिकारों का उल्लंघन भी है। याचिका में यह भी तर्क दिया गया कि POCSO एक्ट की स्पष्ट प्रावधानों के मुताबिक नाबालिग के जननांगों को गैर-चिकित्सकीय कारणों से छूना या क्षति पहुंचाना एक संज्ञेय अपराध है।

याचिकाकर्ताओं ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के रुख का भी हवाला दिया है, जिसमें महिला खतना को लड़कियों और महिलाओं के मानवाधिकारों का गंभीर उल्लंघन बताया गया है। यह मुद्दा नया नहीं है। 2018 में भी सुप्रीम कोर्ट ने दाऊदी बोहरा समाज में नाबालिग लड़कियों के खतना को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर केंद्र से जवाब मांगा था। तब केंद्र ने स्पष्ट कहा था कि, “धर्म की आड़ में लड़कियों का खतना करना अपराध है और सरकार इस पर प्रतिबंध का समर्थन करती है।”

सरकार ने कोर्ट को बताया था कि भारतीय दंड संहिता और अन्य कानूनों के तहत इस तरह के कृत्य पर 7 साल तक की सज़ा का प्रावधान है। इससे पहले अधिवक्ता सुनीता तिहाड़ ने भी दाऊदी बोहरा समाज की इस प्रथा को चुनौती दी थी, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने केरल और तेलंगाना सरकारों को नोटिस जारी किया था। उनकी याचिका में कहा गया था कि भारत ने संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं और ऐसे में महिला खतना प्रथा न तो मानवता के नाते सही है, न ही कानून की रोशनी में।

याचिका में तर्क दिया गया कि यह परंपरा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) का सीधा उल्लंघन है। इसलिए इसे गैर-जमानती और संज्ञेय अपराध घोषित किया जाना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सहित सभी पक्षों से जवाब मांगा है। इसके बाद अदालत यह तय करेगी कि इस मुद्दे पर विस्तृत सुनवाई किस रूप में आगे बढ़ेगी। यह मामला नाबालिग लड़कियों की सुरक्षा, धार्मिक प्रथाओं की संवैधानिक सीमाओं और मानवाधिकारों से जुड़ा एक महत्वपूर्ण विवाद बनकर उभर रहा है।

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