आचार्य चाणक्य की नीति हमारे जीवन के लिए बहुत ही उपयोगी हैं। चाणक्य की कुछ नीतियां यहां बता रहे जो सबके लिए हितकर। आचार्य चाणक्य ने अपने नीतियों में कहा है कि मनुष्य का सबसे बड़ा अगर शत्रु लालच है। बता दें आचार्य चाणक्य महान शिक्षाविद, अर्थशास्त्री और कूटनीतिज्ञ थे। चाणक्य की लिखी बातें आज भी प्रासंगिक हैं।
आचार्य शांति को सबसे बड़ा तप मानते थे। उनका मानना था कि कुछ लोगों के पास दुनिया की सभी सुख-सुविधाएं होती हैं, लेकिन फिर भी उनके पास शांति नहीं होती। शांति तभी आती है, जब व्यक्ति अपने मन पर वश कर ले। संसार में जिस व्यक्ति ने शांति को ढूंढ लिया, समझिए उसका जीवन सफल हो गया। व्यक्ति का सबसे बड़ा शत्रु उसका लालच है। लालची व्यक्ति को कितना कुछ मिल जाए, लेकिन उसकी कामना कभी खत्म नहीं होती। वो दूसरों की भी चीजों पर बुरी नजर रखता है और उन्हें हड़पने की कोशिश करता है। ऐसे व्यक्ति के पास न संतुष्टि होती है और न ही शांति। इसलिए संसार में सबसे बड़ा दुश्मन लालच है।
जिसने लालच पर विजय प्राप्त कर ली, उसने आधी जंग जीत ली। दूसरों के प्रति दया का भाव रखना सबसे बड़ा धर्म है। इंसान रूप में यदि आपके अंदर दया नहीं है तो आप पशु के समान हैं क्योंकि भगवान ने इंसान को ही इस लायक बनाया है, कि वो दूसरों की मदद कर सके। इसलिए आचार्य दया को ही सबसे बड़ा धर्म मानते थे। चाणक्य नीति द्वारा मित्र-भेद से लेकर दुश्मन तक की पहचान, पति-परायण तथा चरित्र हीन स्त्रियों में विभेद, राजा का कर्तव्य और जनता के अधिकारों तथा वर्ण व्यवस्था का उचित निदान हो जाता है। जो व्यक्ति शास्त्रों के सूत्रों का अभ्यास करके ज्ञान ग्रहण करेगा उसे अत्यंत वैभवशाली कर्तव्य के सिद्धांत ज्ञात होंगे।
उसे इस बात का पता चलेगा कि किन बातों का अनुसरण करना चाहिए और किनका नहीं। उसे अच्छाई और बुराई का भी ज्ञान होगा और अंततः उसे सर्वोत्तम का भी ज्ञान होगा। आचार्य चाणक्य कहते हैं कि कभी किसी ऐसी जगह पर नहीं बसना चाहिए, जहां पर आपकी कोई ईज्जत नहीं हो, जहां आपके रोजगार के लिए कोई साधन नहीं हो। जहां आपका कोई मित्र नहीं हो और जहां आप कोई ज्ञान आर्जित नहीं कर पाएं।