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“मुस्लिम समुदाय को ‘ज्ञानवापी और मथुरा’ सौंपे; हिंदू पक्ष को भी नई मांगें नहीं करनी चाहिए”

पूर्व ASI अधिकारी KK मुहम्मद का बयान

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पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (ASI) के पूर्व क्षेत्रीय निदेशक केके मुहम्मद ने एक बार फिर मंदिर–मस्जिद विवादों पर खुलकर अपनी राय रखी है। उन्होंने कहा कि देश में तीन प्रमुख विवादित स्थल अयोध्या, मथुरा और वाराणसी का ज्ञानवापी परिसर ऐसे स्थान हैं जिनका महत्व हिंदू समुदाय के लिए उतना ही है जितना मुस्लिम समाज के लिए मक्का और मदीना का है। उनके अनुसार, इन तीन स्थलों को लेकर वर्षों से चल रहे विवाद का समाधान तभी संभव है जब मुस्लिम समुदाय इन्हें स्वेच्छा से हिंदुओं को सौंप दे और इसके बदले हिंदू पक्ष भी आगे नई जगहों पर दावे करना बंद करे। उन्होंने चेतावनी दी कि मांगों की लिस्ट बढ़ाना समाज के भीतर और तनाव बढ़ाएगा और इसका कोई सकारात्मक परिणाम नहीं निकलेगा।

इंडिया टुडे से बातचीत के दौरान केके मुहम्मद ने कहा कि ज्ञानवापी और मथुरा, राम जन्मभूमि मामले के समान ही भावनात्मक रूप से संवेदनशील स्थान हैं और बार-बार नए विवाद उठाने से स्थिति सुलझने के बजाय उलझती जाएगी। उन्होंने कहा कि देश के कई हिस्सों में मंदिर–मस्जिद मामलों पर दायर याचिकाओं के बीच, सभी पक्षों को संयम और संतुलन अपनाना चाहिए।

केके मुहम्मद ने अयोध्या विवाद से जुड़े अपने अनुभव भी साझा किए। उन्होंने बताया कि 1976 में प्रो. बीबी लाल के नेतृत्व में हुई खुदाई के दौरान एक कम्युनिस्ट इतिहासकार के प्रभाव में मुस्लिम पक्ष को मंदिर के सबूतों को नकारने के लिए उकसाया गया था।

उनके अनुसार, अधिकांश मुस्लिम शुरुआत में समाधान चाहते थे और मंदिर निर्माण को स्वीकार करने के पक्ष में थे, लेकिन गलत सूचनाओं और प्रचार ने विवाद को जटिल बनाया। उन्होंने कहा कि “जिन लोगों ने विवाद को हवा दी, वे कभी खुदाई स्थल पर गए ही नहीं थे, न पहले, न दौरान और न ही बाद में। बिना जानकारी के भ्रम फैलाया गया।”

मुहम्मद ने यह भी कहा कि हिंदू समुदाय के भीतर बढ़ती मांगों को रोकने वाला कोई तंत्र नहीं है, जिससे विवादित स्थलों की सूची लगातार बढ़ती जा रही है। उन्होंने स्पष्ट कहा कि “इन तीन स्थलों के अलावा हिंदुओं को और किसी स्थान पर दावा नहीं करना चाहिए, क्योंकि इससे समस्या हल नहीं होगी, बल्कि नई समस्याएं जन्म लेंगी।”

ताजमहल पर कुछ हिंदू समूहों द्वारा किए जा रहे दावों को उन्होंने “पूरी तरह गलत” बताते हुए कहा कि इसके संबंध में ऐतिहासिक दस्तावेज मौजूद हैं, जिनमें स्पष्ट है कि यह भूमि राजा मान सिंह के महल की थी, जो बाद में जय सिंह को दी गई और फिर शाहजहां को हस्तांतरित हुई। उन्होंने इसे कट्टरपंथियों द्वारा इतिहास को मनमाने ढंग से बदलने का प्रयास  बताया।

विरासत संरक्षण को लेकर भी मुहम्मद ने केंद्र सरकार पर निशाना साधा और कहा कि बीते 11 साल ASI के लिए “काला युग” रहे हैं, क्योंकि अपेक्षित संरक्षण कार्य नहीं हुआ। वहीं ASI के महानिदेशक यदुबीर सिंह रावत ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि संगठन बड़े पैमाने पर कार्य कर रहा है और ASI कभी किसी राजनीतिक पक्ष के साथ नहीं खड़ा होता।

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