शारदीय नवरात्रि इस बार नौ दिन के बजाय आठ दिन ही मनाई जाएगी। इसलिए तीसरी और चौथी नवरात्रि 9 अक्टूबर को ही मनाई जाएगी। इस दिन माता चंद्रघंटा और माता कुष्मांडा की पूजा -अर्चना की जाएगी। ज्योतिषों के अनुसार शनिवार यानी 9 अक्टूबर को सुबह 7 बजकर 38 मिनट तक तृतीय तिथि है , जबकि इसके बाद चौथी तिथि लग जाएगी।
चौथे दिन कुष्माण्डा देवी के स्वरूप की उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन ‘अनाहत’ चक्र में अवस्थित होता है। अतः इस दिन उसे अत्यंत पवित्र और अचंचल मन से कूष्माण्डा देवी के स्वरूप को ध्यान में रखकर पूजा-उपासना के कार्य में लगना चाहिए। जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, तब इन्हीं देवी ने ब्रह्मांड की रचना की थी। अतः ये ही सृष्टि की आदि-स्वरूपा, आदिशक्ति हैं। इनका निवास सूर्यमंडल के भीतर के लोक में है।
ऐसे करें पूजा -अर्चना : चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को सुबह स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं। इसके बाद मां कूष्मांडा का स्मरण करके उनको धूप, गंध, अक्षत्, लाल पुष्प, सफेद कुम्हड़ा, फल, सूखे मेवे और सौभाग्य का सामान अर्पित करें। अब मां कूष्मांडा को हलवा और दही का भोग लगाएं. फिर उसे प्रसाद स्वरूप ग्रहण कर सकते हैं। पूजा के अंत में मां कूष्मांडा की आरती करें और अपनी मनोकामना उनसे व्यक्त कर दें।
देवी कूष्मांडा के मंत्र: या देवी सर्वभूतेषु मां कूष्मांडा रूपेण संस्थिता.
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:..
मां कुष्मांडा की कथा: पौराणिक मान्यता के अनुसार, मां कूष्मांडा से तात्पर्य है कुम्हड़ा। कहा जाता है कि मां कूष्मांडा ने संसार को दैत्यों के अत्याचार से मुक्त करने के लिए ही अवतार लिया था। इनका वाहन सिंह है। हिंदू संस्कृति में कुम्हड़े को कुष्मांड कहते हैं इसलिए इस देवी को कुष्मांडा। पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था देवी ने ही ब्रह्मांड की रचना की थी। इन्हें आदि स्वरूपा और आदिशक्ति भी कहा जाता है। मान्यता है कि इनका निवास सूर्यमंडल के भीतर के लोक में स्थित है। इस दिन मां कूष्मांडा की उपासना से आयु, यश, बल, और स्वास्थ्य में वृद्धि होती है।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:..
मां कुष्मांडा की कथा: पौराणिक मान्यता के अनुसार, मां कूष्मांडा से तात्पर्य है कुम्हड़ा। कहा जाता है कि मां कूष्मांडा ने संसार को दैत्यों के अत्याचार से मुक्त करने के लिए ही अवतार लिया था। इनका वाहन सिंह है। हिंदू संस्कृति में कुम्हड़े को कुष्मांड कहते हैं इसलिए इस देवी को कुष्मांडा। पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था देवी ने ही ब्रह्मांड की रचना की थी। इन्हें आदि स्वरूपा और आदिशक्ति भी कहा जाता है। मान्यता है कि इनका निवास सूर्यमंडल के भीतर के लोक में स्थित है। इस दिन मां कूष्मांडा की उपासना से आयु, यश, बल, और स्वास्थ्य में वृद्धि होती है।
वाहन है शेर: माता कुष्मांडा के आशीर्वाद से दसों दिशाएं प्रकाशमान होती हैं। माता की आठ भुजाएं होती हैं। इसलिए माता कुष्मांडा अष्टभुजा देवी के नाम से भी जानी जाती हैं। उनके सात हाथों में कमंडल , धनुष , बाण , कमल पुष्प, अमृत कलश, चक्र और गदा होता है। वहीं आठवें हाथ में सभी सिद्धि वाली माला होती है ,जबकि माता का वाहन शेर है।