मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम हिंदुस्तानियों के लिए वह आराध्य देव है। परिवार में परिजनों के बीच मधुर संबंध बनाना हो या सभी के सामंजस्य से सभी को साथ लेकर घर चलाना हो, राष्ट्र को सही रास्ते पर आगे बढ़ाना हो या देश के लोगों का दिल जीतना हो। इन सभी बातों में भगवान श्रीराम के आदर्शों को ध्यान मे रखकर आम आदमी अपने घर की, जननेता देश की रुपरेखा तय करते है। भगवान श्रीराम का जन्म चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को हुआ था। इसलिए चैत्र नवरात्र की इस अंतिम तिथि को Ram Navami के रूप में देशभर में मनाया जाता है। भगवान श्रीराम की माता का नाम कौशल्या और उनके पिता का नाम महाराज दशरथ था।
पौराणिक कथानक के अनुसार भगवान श्रीराम का धरती पर अवतरण त्रेता युग में हुआ था। भगवान विष्णु के अवतार के रूप में उनका जन्म दुष्टों को दंड देने और मानव मात्र के कल्याण के लिए धरती पर हुआ था। उन्होंने धर्म को आधार मानकर एक आदर्श राज्य की स्थापना की थी। श्रीराम के जन्म के संबंध में एक कथा का वर्णन धर्मशास्त्रों में मिलता है। इसके अनुसार जब महाराज दशरथ को अपनी तीनों महारानियों से पुत्र की प्राप्ति नहीं हुई तो उन्होंने ऋषि-मुनियों की सलाह पर अपने महल में पुत्रेष्टि यज्ञ का आयोजन किया। पुत्रेष्टि यज्ञ ऋषि ऋष्यश्रृंग ने संपन्न किया था। इस यज्ञ से प्रसाद के रूप में जो खीर प्राप्त हुई उसको महाराज दशरथ ने रानी कैशल्या को दे दिया। देवी कौशल्या ने उस खीर में से कुछ हिस्सा दूसरी रानियों केकैयी और सुमित्रा को भी दे दिया। इसके प्रभाव से चैत्र शुक्ल नवमी को पुनर्वसु नक्षत्र और कर्क लग्न में माता कौशल्या की कोख से भगवान श्रीराम का जन्म हुआ। रानी केकैयी ने भरत को और रानी सुमित्रा की कोख से लक्ष्मण और शत्रुघ्न का जन्म हुआ।