मुंबई का महालक्ष्मी मंदिर समुद्र के किनारे बी. देसाई मार्ग पर स्थित है। यह मंदिर अत्यंत सुंदर, आकर्षक होने के साथ लाखों लोगों की आस्था का प्रमुख केंद्र भी है। इस मंदिर से जुड़ी कई परंपराएं और मान्यताएं भी हैं, जो इसे और भी विशिष्ट बनाती हैं। इस मंदिर में स्थापित प्रतिमा की कहानी बहुत ही रोचक और चमत्कारी है। महालक्ष्मी मंदिर के मुख्य द्वार पर सुंदर नक्काशी की गई है। मंदिर परिसर में विभिन्न देवी-देवताओं की आकर्षक प्रतिमाएँ स्थापित हैं। मंदिर के गर्भगृह में महालक्ष्मी, महाकाली एवं महासरस्वती तीनों देवियों की प्रतिमाएँ एक साथ विद्यमान हैं। तीनों प्रतिमाओं को सोने एवं मोतियों के आभूषणों से सुसज्जित किया गया है।
गौरतलब है कि अंग्रेज शासन काल के दौरान वर्ली और मालाबार हिल को जोड़ने के लिए दीवार का निर्माण कार्य चल रहा था। सैकड़ों मजदूर इस दीवार के निर्माण कार्य में लगे हुए थे, मगर हर दिन कोई न कोई बाधा आ रही थी। इसके कारण ब्रिटिश इंजीनियर काफी परेशान हो गए। इसी दौरान इस प्रोजेक्ट के मुख्य इंजीनियर रामजी शिवाजी के सपने में आकर देवी लक्ष्मी ने कहा कि- समुद्र के किनारे मेरी एक मूर्ति है। उस मूर्ति को वहां से निकालकर मेरी स्थापना करो। ऐसा करने से हर बाधा दूर हो जाएगी। जैसे देवी ने सपने में कहा था ठीक वैसा ही हुआ और माता के आदेशानुसार मूर्ति की स्थापना कर छोटा-सा मंदिर बनवाया गया। इसके बाद वर्ली-मालाबार हिल के बीच की दीवार बिना किसी बाधा के खड़ी हो गई। इसके बाद मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ने लगी। सन् 1831 में धाकजी दादाजी नाम के एक व्यवसायी ने छोटे से मंदिर को बड़ा स्वरूप दिया एवं जीर्णोद्धार कराया।