देशभर में शुक्रवार को जन्माष्टमी का त्योहार जोर शोर से मनाया जा रहा है, लेकिन भगवान श्रीकृष्ण के पैतृक गांव और राजधानी शौरीपुर में कोई शोर नहीं है। जनपद मुख्यालय से 85 किलोमीटर दूर यमुना किनारे ब्रज की काशी (बटेश्वरधाम) स्थित है। वहीं, बटेश्वरधाम से करीब तीन किलोमीटर की दूर शौरीपुर (शौर्यपुर) है, जो भगवान श्रीकृष्ण के पूर्वजों की राजधानी बताई जाती है।
दरअसल, शौरीपुर जैन धर्म की आस्था का केंद्र हैं। भगवान श्रीकृष्ण के चचेरे भाई और जैन धर्म के 22वें तीर्थंकर भगवान नेमीनाथ का जहां जन्म हुआ था। भगवान नेमीनाथ का विवाह जूनागढ़ (सौराष्ट्र) के राजा उग्रसेन की पुत्री से तय हुआ था। शौरीपुर से भगवान श्रीकृष्ण के चचेरे भाई और अन्य यदुवंशी धूमधाम से भगवान नेमीनाथ की बारात लेकर जूनागढ़ गए। जूनागढ़ में पशुओं की बलि को देखकर भगवान नेमीनाथ ने पूछा कि यह क्या है। तो उन्हें लोगों ने बताया था कि बारात में कुछ लोग मांसाहारी भी आए हैं। इसके लिए पशुओं को काटा गया है। इससे उनके लिए भोजन बनेगा। इतना सुनते ही भगवान नेमीनाथ ने अपना कंगन और सेहरा उतार दिया और गिरनार पर्वत पर तपस्या करने चले गए। वहां पर दीक्षा ग्रहण करके दिगंबर साधु बन गए।
बता दें, द्वापर युग में मथुरा में कंस की बहन देवकी से विवाह करने वासुदेव जी शौरीपुर से गाजे-बाजे के साथ गए थे। विवाह के बाद आकाशवाणी हुई कि हे कंस देवकी के गर्भ से पैदा होने वाला पुत्र तेरा वध करेगा। इस आकाशवाणी से गुस्साए कंस ने वासुदेव और देवकी को कारागार में डाल दिया था। इसी वजह से भगवान श्रीकृष्ण का जन्म मथुरा में हुआ था। महाभारत काल में राजा शूरसेन ने यमुना किनारे शौर्यपुर नगरी (शौरीपुर) बसाई थी। वासुदेव के यहां भगवान श्रीकृष्ण ने जन्म लिया था। अगर आकाशवाणी नहीं होती तो संभवत भगवान श्रीकृष्ण शौरीपुर में ही पैदा होते और जन्माष्टमी पर शौर्यपुर में धूमधाम से मनाई जा रही होती। पर ऐसा नहीं हुआ आज मथुरा में बड़ी धूमधाम से कृष्ण जनमोत्स्व मान्य जा रहा है।
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