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Thursday, December 11, 2025
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अनमोल विचार: स्वामी विवेकानंद के वो विचार जिनसे हमेशा मिलती है प्रेरणा

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स्वामी विवेकानंद वेदांत के प्रसिद्ध और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु थे। उनके विचार हर किसी के लिए महत्वपूर्ण है। उन्होंने भारत का आध्यात्मिक विचार को  भारत में ही नहीं बल्कि अमेरिका यूरोप आदि देशों में पहुंचाया।स्वामी विवेकानंद का अमेरिका स्थित शिकागो में दिया गया भाषण सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया था। उन्हें धर्म सभा में बोलने के लिए केवल 2 मिनट का समय मिला था। स्वामी विवेकानंद ने भाषण की शुरुआत मेरे अमेरिकी भाइयों और बहनों से किया। उनके इस प्रथम वाक्य ने वहां उपस्थित सभी लोगों का दिल जीत लिया था। भारत में स्वामी विवेकानंद को एक देशभक्त संन्यासी के रूप में जाना जाता है। उनके जन्मदिन को भारत में राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप मनाया जाता है। आज भी उनके विचार सभी के लिए उपयोगी और प्रेरणाप्रद हैं। 

भाग्य बहादुर और कर्मठ व्यक्ति का ही साथ देता है। पीछे मुडकर मत देखो आगे, अपार शक्ति, अपरिमित उत्साह, अमित साहस और निस्सीम धैर्य की आवश्यकता है, और तभी महती कार्य निष्पादन किये जा सकते हैं। हमें पूरे विश्व को उद्दीप्त करना है। पवित्रता, धैर्य तथा प्रयत्न के द्वारा सारी बाधाएँ दूर हो जाती हैं। इसमें कोई सन्देह नहीं कि महान कार्य सभी धीरे धीरे होते हैं।साहसी होकर काम करो।
धीरज और स्थिरता से काम करना। यही एक मार्ग है। आगे बढ़ो और याद रखो धीरज, साहस, पवित्रता और अनवरत कर्म। जब तक तुम पवित्र होकर अपने उद्देश्य पर डटे रहोगे, तब तक तुम कभी निष्फल नहीं होओगे। माँ तुम्हें कभी न छोडेगी और पूर्ण आशीर्वाद के तुम पात्र हो जाओगे। किसी को उसकी योजनाओं में हतोत्साह नहीं करना चाहिए। आलोचना की प्रवृत्ति का पूर्णतः परित्याग कर दो। जब तक वे सही मार्ग पर अग्रसर हो रहे हैं, तब तक उनके कार्य में सहायता करो, और जब कभी तुमको उनके कार्य में कोई गलती नज़र आये, तो नम्रतापूर्वक गलती के प्रति उनको सजग कर दो। एक दूसरे की आलोचना ही सब दोषों की जड़ है।
किसी भी संगठन को विनष्ट करने में इसका बहुत बड़ा हाथ है। किसी बात से तुम उत्साहहीन न हो,जब तक ईश्वर की कृपा हमारे ऊपर है, कौन इस पृथ्वी पर हमारी उपेक्षा कर सकता है? यदि तुम अपनी अंतिम साँस भी ले रहे हो तो भी न डरना। सिंह की शूरता और पुष्प की कोमलता के साथ काम करते रहो।क्या तुम नहीं अनुभव करते कि दूसरों के ऊपर निर्भर रहना बुद्धिमानी नहीं है। बुद्धिमान व्यक्ति को अपने ही पैरों पर दृढ़ता पूर्वक खड़ा होकर कार्य करना चहिए। धीरे धीरे सब कुछ ठीक हो जाएगा।

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