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16 साल की उम्र में लिखी पुस्तक, 30 मिनट में बिक गया पहला संस्करण   

विवान कारुलकर द्वारा लिखी गई पुस्तक "द सनातन धर्म: ट्रू सोर्स ऑफ़ ऑल साइंस" की काफी सराहना की जा रही है।

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विवान कारुलकर द्वारा लिखी गई पुस्तक “द सनातन धर्म: ट्रू सोर्स ऑफ़ ऑल साइंस” की काफी सराहना की जा रही है। विवान ने यह पुस्तक 16 साल की उम्र में लिखी है। पुस्तक में सनातन धर्म और विज्ञान के संबंध में चर्चा की गई है। पुस्तक के अनुसार सनातन धर्म और विज्ञान के बीच गहरा संबंध है, इसको देखते हुए कहा जा सकता है कि सनतान धर्म विज्ञान का असली स्रोत है। वेदों में जो कई साल पहले लिखा गया था, वही आज विज्ञान है। गौरतलब है कि विवान कारुलकर मुंबई के प्रसिद्ध उद्योगपति और कारूलकर प्रतिष्ठान के मुखिया प्रशांत कारुलकर और शीतल कारुलकर के सुपुत्र हैं।

“द सनातन धर्म: ट्रू सोर्स ऑफ़ ऑल साइंस” की श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने काफी सराहना की है। साथ ही इस पुस्तक को भगवान राम के चरणों में रखकर उनका आशीर्वाद लिया गया। पुस्तक के पहले पन्ने पर चंपत राय ने अपनी भावनाएं भी जाहिर की है और विवान कारुलकर के इस नेक प्रयास की सराहना की है। सबसे बड़ी बात यह है कि इस पुस्तक का पहला संस्करण मात्र 30 मिनट में ही बिक गया। यह पुस्तक अमेजन पर उपलब्ध है। इस पुस्तक को ऑनलाइन खरीदा जा सकता है।

विवान कारुलकर की इस उपलब्धि में उनके माता-पिता यानी कारुलकर प्रतिष्ठान के अध्यक्ष  प्रशांत कारुलकर तथा उपाध्यक्ष शीतल कारुलकर का पूरा सहयोग रहा है। उन्होंने लगातार विवान को इस कार्य के लिए प्रोत्साहित किया। “द सनातन धर्म: ट्रू सोर्स ऑफ़ ऑल साइंस” के बारे में प्रशांत कारुलकर का कहना है कि वेदों में कई साल पहले जो लिखा गया था, वही आज का विज्ञान है। मगर, पश्चिमी देशों के वैज्ञानिक हमेशा नई खोज का दावा करते रहे हैं, जबकि इन खोजों का मूल स्रोत वेदों में पहले से निहित है। उन्होंने कहा कि विवान ने उन्हीं मामलों पर यह पुस्तक लिखी है, इसमें 46 चीजों के बारे में सनातन धर्म से संबंध और उसके वैज्ञानिक महत्व पर प्रकाश डाला गया है।

उद्योगपति प्रशांत कारुलकर ने कहा कि “हमारा परिवार सनातन धर्म में विश्वास रखता है। मगर इस पुस्तक को लिखने का यह एकमात्र कारण नहीं है। उन्होंने कहा कि विवान ने 13 साल की उम्र में पृथ्वी की ओर आने वाले सूक्ष्म ग्रहों का पता लगाने के लिए एक पेटेंट कराया था यानी इसका सैद्धांतिक पेटेंट करा लिया गया है। उन्होंने कहा कि विज्ञान और खगोल विज्ञान के प्रति जुनून रखने वाले विवान के पिछले तीन साल के अथक प्रयास के कारण ही यह पुस्तक मूर्त रूप ले पाई है। कहा जा सकता है कि विवान ने इस पुस्तक को लिखने के लिए कड़ी मेहनत और गहन अध्ययन किया है।

कारुलकर का कहना है कि हमारे वेदों में विज्ञान के बारे में जो लिखा गया है, वही आज के आधुनिक विज्ञान का मूल स्रोत है। उन्होंने श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय का भी आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि ” विवान को आपके द्वारा प्रोत्साहित किये जाने के लिए हम आभारी हैं। कारुलकर प्रतिष्ठान के अध्यक्ष प्रशांत कारुलकर ने कहा कि ऐसी पुस्तकों के जरिये नए भारत का नया विचार प्रस्तुत करने का प्रयास किया जा सकता है। उन्होंने  लोगों से अपील की कि यह पुस्तक अमेजन पर उपलब्ध है, इसे लोगों को जरूर पढ़नी चाहिए।

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