स्वामी विवेकानंद ने आज के दिन शिकागो में क्या कहा था?

स्वामी विवेकानंद ने आज के दिन शिकागो में क्या कहा था?

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नई दिल्ली। स्वामी विवेकानंद ने आज के ही दिन यानी 11 सितम्बर को 128 साल पहले अमेरिका के शिकागो में ऐसा भाषण दिया था कि पूरी दुनिया उनकी मुरीद हो गई थी। उन्होंने 1893 में हुए विश्व धर्म सम्मेलन में ओजपूर्ण भाषण से पूरी दुनिया को अपना कायल बना लिया था। जिस पर हर भारतीय को आज भी गर्व है। स्वामी विवेकानंद ने धर्म सम्मेलन में पहला शब्द जो बोला था वह प्रिय बहनो और भाइयो था। बताया जाता है कि इस सम्मेलन में शामिल होने के लिए जो उनके शिष्यों धन इकठ्ठा किये थे उसे गरीबों में बंटवा दिए थे।

प्रिय बहनो और भाइयो: विवेकानंद ने अपने भाषण की शुरुआत प्रिय बहनो और भाइयो से की थी। इसके बाद उन्होंने कहा, ‘आपके इस स्नेहपूर्ण और जोरदार स्वागत से मेरा हृदय अपार हर्ष से भर गया है। मैं आप सभी को दुनिया की सबसे पुरानी संत परंपरा की ओर से शुक्रिया करता हूं। मैं आपको सभी धर्मों की जननी की तरफ से धन्यवाद देता हूं।’ उन्होंने कहा, ‘मेरा धन्यवाद उन लोगों को भी है जिन्होंने इस मंच का उपयोग करते हुए कहा कि दुनिया में सहनशीलता का विचार भारत से फैला है।’ स्वामी विवेकानंद ने आगे बताया था कि उन्हें गर्व है कि वे एक ऐसे धर्म से हैं, जिसने दुनियाभर के लोगों को सहनशीलता और स्वीकृति का पाठ पढ़ाया है।

मैं जिस धर्म से हूं,उस पर गर्व है: शिकागो में विश्व धर्म सम्मेलन के अपने भाषण में विवेकानंद ने कहा था कि हम सिर्फ सार्वभौमिक सहनशीलता में ही केवल विश्वास नहीं रखते हैं। बल्कि हम दुनिया के सभी धर्मों को सत्य के रूप में स्वीकार करते हैं। मैं गर्व करता हूं कि मैं एक ऐसे देश से हूं, जिसने इस धरती के सभी देशों और धर्मों के परेशान और सताए गए लोगों को शरण दी है। उन्होंने कहा कि यह बताते हुए मुझे गर्व हो रहा है कि हमने अपने हृदय में उन इजराइलियों की पवित्र स्मृतियां संजोकर रखी हैं, जिनके धर्म स्थलों को रोमन हमलावरों ने तोड़-तोड़कर खंडहर में तब्दील कर दिया था। इसके बाद उन्होंने दक्षिण भारत में शरण ली थी। स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि सभी धर्मों के लोगों को शरण दी। मुझे इस बात का गर्व है कि मैं जिस धर्म से हूं, उसने महान पारसी धर्म के लोगों को शरण दी। इसके बाद अभी भी उन्हें पाल रहा है। इसके बाद विवेकानंद ने कुछ श्लोक की पंक्तियां भी सुनाई थीं।
रुचीनां वैचित्र्यादृजुकुटिलनानापथजुषाम्। नृणामेको गम्यस्त्वमसि पयसामर्णव इव।।
मतलब: जैसे नदियां अलग अलग स्रोतों से निकलती हैं और आखिर में समुद्र में जाकर मिलती हैं। वैसे ही मनुष्य अपनी इच्छा के अनुरूप अलग-अलग रास्ते चुनता है। उन्होंने कहा, ‘लंबे समय से कट्टरता, सांप्रदायिकता, हठधर्मिता आदि पृथ्वी को अपने शिकंजों में जकड़े हुए हैं। इन सभी ने धरती को हिंसा से भर दिया है। कई बार धरती खून से लाल हुई है। इसके अलावा काफी सभ्यताओं का विनाश हुआ है और न जाने कितने देश नष्ट हो गए हैं।

सम्मेलन में शामिल होने के लिए मिले सुझाव: बताया जाता है अमेरिका के शिकागो में होने वाले विश्व धर्म सम्मेलन में शामिल होने के लिए गुजरात के काठियावाड़ के लोगों ने सुझाव दिए थे। इस बारे में स्वामी विवेकानंद ने लिखा था कि तमिलनाडु के राजा भास्कर सेतुपति उन्हें पहली बार यह सुझाव दिया। बताया जाता है कि स्वामी विवेकानंद के शिकागो जाने के लिए उनके शिष्यों ने धन एकत्रित कर लिए थे ,लेकिन स्वामी विवेकानंद ने इन पैसों को गरीबों में बांटने को कहा था। यह भी कहा जाता है कि जब स्वामी विवेकानंद को शिकागो जाने का सुझाव मिला तो वे कन्याकुमारी पहुंच गए। उन्होंने तैरकर समुद्र में स्थित एक चट्टान पहुंचे और वहां तीन दिन तक भारत के भूत और भविष्य पर ध्यान लगाया।
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