चैत्र नवरात्रि में डांडिया और गरबा क्यों नहीं होते?

चैत्र नवरात्रि की विशेषता इसकी साधना और तंत्रिक पूजा में है, जिसमें भक्त अधिक ध्यान और भक्ति के साथ देवी दुर्गा की उपासना करते हैं। वहीं, शरद नवरात्रि का माहौल उल्लासपूर्ण और सामूहिक होता है, जिसमें डांडिया और गरबा जैसे उत्सव प्रमुख होते हैं। इ

चैत्र नवरात्रि में डांडिया और गरबा क्यों नहीं होते?

Why are Dandiya and Garba not performed during Chaitra Navratri?

चैत्र नवरात्रि, जिसे हिन्दू धर्म में विशेष महत्व दिया जाता है, देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा करने का पर्व है। यह पर्व शक्ति, सुरक्षा और आध्यात्मिक उन्नति का प्रतीक माना जाता है। चैत्र नवरात्रि इस बार 30 मार्च से शुरू होकर 7 अप्रैल तक मनाई जाएगी, और इसके समापन पर राम नवमी का त्योहार मनाया जाएगा। यह पर्व मुख्य रूप से उत्तर भारत और पश्चिम भारत में धूमधाम से मनाया जाता है, लेकिन एक सवाल जो अक्सर सामने आता है वह यह है कि चैत्र नवरात्रि में डांडिया और गरबा क्यों नहीं खेले जाते?

इसका जवाब तीन मुख्य कारणों में छुपा हुआ है, जो इस परंपरा के गहरे धार्मिक और सांस्कृतिक पहलुओं को उजागर करते हैं।

पूजा का स्वरूप और आस्थाएं:

चैत्र नवरात्रि मुख्य रूप से घरों में शांतिपूर्वक पूजा और साधना के रूप में मनाई जाती है। इसका प्रमुख उद्देश्य देवी दुर्गा की पूजा करके समृद्धि और ऐश्वर्य प्राप्त करना है। यह पर्व तंत्रिक आस्थाओं और गुप्त पूजा से जुड़ा होता है, जो अधिक गंभीर और शांतिपूर्ण होता है। वहीं, शरद नवरात्रि में सामूहिक उत्सव और नृत्य जैसे गरबा-डांडिया का आयोजन होता है। चैत्र नवरात्रि का माहौल पूजा और साधना पर केंद्रित रहता है, जिससे इस दौरान ऐसे आयोजनों की परंपरा नहीं रही है।

शरद नवरात्रि से फर्क:

चैत्र नवरात्रि के मुकाबले शरद नवरात्रि में उल्लासपूर्ण वातावरण होता है, जहां डांडिया और गरबा जैसे नृत्य बड़े उत्साह के साथ होते हैं। लेकिन चैत्र नवरात्रि के नौ दिन भगवान राम के जन्म से पहले के नौ महीनों का प्रतीक होते हैं, जो साधना और तपस्या से जुड़े होते हैं। इस दौरान भक्त अधिक गंभीरता से पूजा करते हैं और इस पर्व का समापन राम नवमी के दिन होता है, जब भगवान राम का जन्म होता है। इसलिए चैत्र नवरात्रि को शरद नवरात्रि के मुकाबले एक गहरे आध्यात्मिक अनुभव के रूप में मनाया जाता है।

ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य:

ऐतिहासिक रूप से यह माना जाता है कि चैत्र नवरात्रि में भी डांडिया और गरबा खेले जाते थे, लेकिन यह परंपरा लोकमान्य तिलक के समय में अधिक प्रचलित हुई। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी तिलक ने शरद नवरात्रि को जन आंदोलन का हिस्सा बनाते हुए इसे बड़े पैमाने पर मनाना शुरू किया, जिसमें डांडिया और गरबा का आयोजन हुआ। जबकि चैत्र नवरात्रि में परंपरागत रूप से इस तरह के उत्सवों की जगह साधना और पूजा को ज्यादा महत्व दिया जाता है।

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चैत्र नवरात्रि की विशेषता इसकी साधना और तंत्रिक पूजा में है, जिसमें भक्त अधिक ध्यान और भक्ति के साथ देवी दुर्गा की उपासना करते हैं। वहीं, शरद नवरात्रि का माहौल उल्लासपूर्ण और सामूहिक होता है, जिसमें डांडिया और गरबा जैसे उत्सव प्रमुख होते हैं। इसलिए चैत्र नवरात्रि में इन नृत्यों की परंपरा नहीं है, क्योंकि यह पर्व अधिक गहरी आध्यात्मिक साधना और पूजा के रूप में मनाया जाता है।

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