भारतीय क्रिकेट के इतिहास में जब भी निडर नेतृत्व और बल्लेबाजी की बात होती है, तो ‘लिटिल मास्टर’ सुनील गावस्कर का नाम सबसे ऊपर आता है। मुंबई में 10 जुलाई 1949 को जन्मे गावस्कर का कद भले ही छोटा रहा हो, लेकिन क्रिकेट के मैदान पर उनका रुतबा और हिम्मत किसी दिग्गज से कम नहीं थी। उनका करियर कई महान पारियों और संघर्षों से भरा हुआ है, लेकिन 1981 के मेलबर्न टेस्ट में लिया गया एक साहसी फैसला आज भी क्रिकेट इतिहास में चर्चा का विषय है। यह वह समय था जब तेज गेंदबाजों का दबदबा था, बल्ले भारी नहीं होते थे और हेलमेट का प्रचलन बहुत कम था।
भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच खेली जा रही तीन मैचों की टेस्ट सीरीज में भारत पहला टेस्ट सिडनी में हार चुका था। दूसरा टेस्ट किसी तरह ड्रॉ हुआ और तीसरे टेस्ट को जीतना भारत के लिए बेहद जरूरी था। मेलबर्न टेस्ट की पहली पारी में भारत ने 237 रन बनाए, जिसके जवाब में ऑस्ट्रेलिया ने 419 रन ठोक दिए। भारत 182 रन से पिछड़ रहा था। लेकिन दूसरी पारी में गावस्कर और चेतन चौहान की सलामी जोड़ी ने टीम को नई उम्मीद दी और 165 रनों की साझेदारी कर डाली।
गावस्कर 70 रन पर खेल रहे थे जब डेनिस लिली की एक गेंद उनके पैड पर लगी और अंपायर रेक्स व्हाइटफील्ड ने उन्हें एलबीडब्ल्यू आउट दे दिया। गावस्कर इससे असहमत थे, लेकिन जैसे-तैसे पवेलियन लौटने लगे। उसी दौरान उन्होंने चेतन चौहान को भी पिच छोड़ने के लिए कह दिया। चौहान हिचकिचाते हुए लौटने लगे, लेकिन टीम मैनेजर एसएके दुर्रानी ने उन्हें रोक लिया। यह भारतीय क्रिकेट इतिहास की सबसे असाधारण घटनाओं में से एक मानी जाती है।
गावस्कर ने वर्षों बाद इस घटना पर सफाई देते हुए बताया कि अंपायरिंग से नहीं, बल्कि एक ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ी द्वारा दिए गए अपशब्दों से वह नाराज थे। उन्होंने उसी क्षण में आवेश में आकर चौहान से पवेलियन लौटने को कहा।
इस घटना के बाद भारत ने 324 रन बनाए और कपिल देव की धारदार गेंदबाजी (5 विकेट) के दम पर ऑस्ट्रेलिया को दूसरी पारी में सिर्फ 83 रन पर समेट दिया। भारत ने यह ऐतिहासिक मुकाबला 59 रन से जीता और सीरीज 1-1 से बराबर रही।
सुनील गावस्कर ने अपने अंतरराष्ट्रीय करियर में भारतीय क्रिकेट को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया। उन्होंने कुल 125 टेस्ट मैचों में 51.12 की शानदार औसत से 10,122 रन बनाए, जिसमें 34 शतक, 4 दोहरे शतक और 45 अर्धशतक शामिल हैं।
टेस्ट क्रिकेट में यह आंकड़ा उस दौर के लिहाज से बेहद असाधारण माना जाता है, जब बल्लेबाजी के हालात कठिन हुआ करते थे। वनडे क्रिकेट में भी उन्होंने 108 मुकाबलों में 35.14 की औसत से 3,092 रन बनाए। उनके इन आंकड़ों से साफ है कि वह केवल तकनीकी रूप से परिपूर्ण बल्लेबाज ही नहीं, बल्कि मानसिक रूप से भी बेहद मजबूत खिलाड़ी थे, जिन्होंने भारतीय क्रिकेट को आत्मविश्वास और सम्मान दिलाया।
सुनील गावस्कर न केवल भारत के पहले ऐसे बल्लेबाज बने जिन्होंने टेस्ट में 10 हजार रन का आंकड़ा पार किया, बल्कि उन्होंने भारतीय क्रिकेट को संघर्ष से सम्मान की राह भी दिखाई। मेलबर्न का यह वॉकआउट एपिसोड निडर नेतृत्व और आत्मसम्मान का प्रतीक बन गया।
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